यह बहस तो अभी लंबी खिंचेगी कि पाकिस्तान मूलत: किन कारणों से भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को आनन-फानन रिहा करने पर सहमत हो गया, लेकिन इसमें कोई संशय नहीं कि उसे इस्लामी देशों के सबसे बड़े समूह ओआइसी यानी इस्लामिक सहयोग संगठन में मुंह की खानी पड़ी। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि इस संगठन ने पाकिस्तान की नाराजगी और यहां तक कि आयोजन के बहिष्कार की उसकी धमकी की भी अनदेखी कर यह सुनिश्चित किया कि अतिथि वक्ता के तौर पर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उसके मंच को अवश्य संबोधित करें। उन्होंने ऐसा ही किया। इसी के साथ इस पर मुहर लग गई कि खुद इस्लामी देश पाकिस्तान को एक सीमा से अधिक अहमियत देने को तैयार नहीं। 

उनके रवैये ने भारत के बढ़ते कद को ही प्रमाणित किया। यह इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि एक समय पाकिस्तान के विरोध के चलते भारतीय प्रतिनिधिमंडल को मोरक्को में इस संगठन के समारोह में शिरकत नहीं करने दी गई थी। दरअसल तब पाकिस्तान ने जिद पकड़ ली थी कि यदि भारतीय दल को अनुमति दी गई तो वह आयोजन का बहिष्कार कर देगा। वक्त ने करवट ली और अब हालत यह है कि अबुधाबी में उसके विरोध को दरकिनार कर दिया गया।

यह सही है कि हाल के समय में भारत ओआइसी में भागीदारी करने का इच्छुक नहीं रहा और अभी भी यह साफ नहीं कि भारतीय नेतृत्व इस संगठन में अपनी भावी भूमिका को लेकर क्या सोच रहा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि पाकिस्तान इसकी अनदेखी करे कि भारत के इस्लामी देशों से संबंध सदियों पुराने हैं। इन संबंधों और भारत में मुसलमानों की बड़ी आबादी के कारण ही भारत को मोरक्को में निमंत्रित किया गया था। पाकिस्तान को यह वैसे ही नहीं सुहाया था जैसे अब यह नहीं भाया कि भारतीय विदेश मंत्री ओआइसी के मंच से बोलें।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कमजोर पड़ने के साथ ही विश्व स्तर पर बदनाम हो रहे पाकिस्तान को ओआइसी के मौजूदा नेतृत्व से बदलते जमाने के साथ चलना सीखना चाहिए, लेकिन शायद उसने न सुधरने की ठान ली है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या कारण है कि वह एक ओर शांति का संदेश देने के लिए विंग कमांडर अभिनंदन को छोड़ने का फैसला करता है और दूसरी ओर ओआइसी में भारतीय विदेश मंत्री के संबोधन को सुनने के लिए तैयार नहीं होता? इससे यही पता चलता है कि पाकिस्तान भारत के प्रति अपने बैर को छोड़ने के लिए तैयार नहीं। इसीलिए उससे सतर्क रहना होगा।

अभिनंदन को छोड़ने का उसका फैसला यह नहीं साफ करता कि वह आतंक का साथ छोड़ने को तैयार है। वह यह काम इसलिए आसानी से नहीं करने वाला, क्योंकि उसे लगता है कि भारत को आतंकवाद के जरिये ही झुकाया जा सकता है। इस मुगालते से ग्रस्त होने के कारण ही मुंबई हमले के गुनहगार उसके यहां छुट्टा घूम रहे हैं। इमरान खान को शांति का मसीहा करार देने वाले यह समझे तो बेहतर कि एक तो जैश जैसे संगठन उनके लिए वोट जुटाने का काम कर चुके हैं और दूसरे वह पाकिस्तान के असली शासक नहीं हैं।