यह बात सामने आने पर हैरानी नहीं कि प्रदूषण की रोकथाम के मामले में राज्यों का रवैया बेहद लापरवाही भरा है। यदि उत्तर भारत को वायु प्रदूषण से निजात नहीं मिल पा रही है तो इसी कारण कि संबंधित राज्य सरकारें प्रदूषण रोधी उपायों पर अमल करने के लिए तैयार नहीं। चूंकि राज्य सरकारों के साथ उनकी एजेंसियां भी अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार नहीं इसलिए स्थानीय निकाय भी कुछ करने के लिए सक्रिय नहीं होते। वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं कि वे अपना तय काम मुश्किल से ही करते हैं। यदि वे भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के अड्डों के तौर पर जाने जाते हैं तो अपने नाकारापन के कारण ही। वे घटिया राजनीति के गढ़ भी बन गए हैं और इसी कारण कई बार यह सामने आता है कि अगर स्थानीय निकाय पर राज्य में सत्तारूढ़ दल से इतर दल का वर्चस्व हो तो शासन की अपेक्षाओं की भी अनदेखी होती है। इस सबका ही यह नतीजा है कि छोटे-बड़े शहरों में वे सारी गतिविधियां बिना रोक-टोक जारी रहती हैं जो हर तरह के प्रदूषण को जन्म देती हैं।

वास्तव में सभी को यह समझने की जरूरत है कि प्रदूषण और खासकर वायु प्रदूषण पर तब तक प्रभावी लगाम नहीं लग सकती जब तक स्थानीय निकाय प्रदूषण फैलाने वाले कारणों का निवारण करने के मामले में सजगता का परिचय नहीं देते। वे सजग हों, इसके लिए राज्य सरकारों को अपना रवैया बदलना होगा। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि बीते दो-तीन वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि केंद्र सरकार अक्टूबर-नवंबर में राज्यों को इसके लिए आगाह करती है कि पराली जलने न पाए, लेकिन होता वही है जो दशकों से होता चला आ रहा है। दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को पराली दहन को लेकर आगाह करने का काम राष्ट्रीय हरित अधिकरण की ओर से भी किया जाता है, लेकिन वह भी काम नहीं आता।

आखिर यह लापरवाही की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि इस बार भी पंजाब, हरियाणा समेत कुछ और राज्यों में पराली जली? इस साल हरियाणा में तो तब भी गनीमत रही, लेकिन पंजाब में पिछले साल के मुकाबले कहीं ज्यादा पराली दहन हुआ। इससे यही पता चलता है कि राज्य सरकारें वायु प्रदूषण से निपटने के मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय नहीं दे रही हैं। उनकी अनिच्छा का नकारात्मक असर स्थानीय निकायों पर दिखता है। यदि यह समझा जा रहा है कि सब कुछ केंद्र सरकार कर सकती है तो यह सही नहीं। वायु प्रदूषण से छुटकारा तो तभी मिल सकता है जब सभी अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। नि:संदेह इसमें आम आदमी भी शामिल हैं।