नेशनल मेडिकल कमीशन बिल पर लोकसभा की मुहर के साथ ही यह उम्मीद बढ़ गई है कि जल्द ही राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन होगा। इस आयोग के गठन का एक बड़ा उद्देश्य भारत को विश्व स्तरीय मेडिकल शिक्षा का केंद्र बनाना है। मेडिकल कमीशन बिल को कानूनी स्वरूप दिए जाने का इंतजार इसलिए हो रहा है, क्योंकि ऐसा होने पर ही उस मेडिकल काउंसिल से छुटकारा मिल सकेगा जिसके बारे में इस नतीजे पर पहुंचा गया था कि वह एक अक्षम और भ्रष्टाचार से ग्रस्त संस्था है।

हालांकि नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के कुछ प्रावधानों का विरोध भी हो रहा है, लेकिन ऐसा करीब-करीब हर विधेयक के मामले में देखने को मिलता है। इतने बड़े देश में ऐसे किसी विधेयक का निर्माण मुश्किल ही है जिसके सभी प्रावधानों पर हर कोई सहमत हो सके।

देखना है कि सरकार इस मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करती है या नहीं कि मेडिकल छात्रों को एक्जिट परीक्षा देने का अवसर एक से अधिक बार मिले? जो भी हो, उचित यही है कि विपक्षी राजनीतिक दल यह समझें कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन का समय आ गया है। इस आयोग के जरिये केवल मेडिकल शिक्षा की विसंगतियों को ही दूर करने में मदद नहीं मिलेगी, बल्कि चिकित्सकों और खासकर विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी को दूर करने का लक्ष्य भी पूरा किया जा सकेगा। फिलहाल यह एक कठिन लक्ष्य दिख रहा है।

चिकित्सा शिक्षा और शोध में सुधार की पहल एक ऐसे समय हो रही है जब शिक्षा के अन्य क्षेत्रों में भी सुधार की कवायद चल रही है। नई शिक्षा नीति के मसौदे को इसी सिलसिले में देखा जाना चाहिए। वर्तमान में शिक्षा के हर स्तर पर व्यापक सुधार की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए यह समय की मांग है कि शिक्षा संबंधी कोई ऐसा राष्ट्रीय आयोग भी बने जो विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षा संस्थानों के तौर-तरीकों और मानकों में एकरूपता लाने का काम कर सके।

ऐसा कोई आयोग ही विभिन्न मंत्रालयों से जुड़े शिक्षा संस्थानों को समान धरातल पर लाने और उनकी गुणवत्ता को एक स्तर प्रदान का काम कर सकता है। यह आयोग मानव संसाधन विकास मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के शिक्षा संस्थानों में समन्वय बैठाने का भी काम कर सकता है।

ध्यान रहे आज की जरूरत केवल यही नहीं है कि हमारी मेडिकल शिक्षा विश्वस्तरीय हो, बल्कि यह भी है कि तकनीक, कृषि, प्रबंधन आदि से जुड़ी शिक्षा का भी स्तर सुधरे। यह जरूरत इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि सरकार इस कोशिश में है कि विदेशी छात्र भी भारत आकर उच्च शिक्षा ग्रहण करें।

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