देश की राजधानी दिल्ली में तीस हजारी अदालत परिसर में वकीलों और पुलिस के बीच भिड़ंत के बाद देश के अन्य हिस्सों में वकीलों के हड़ताल पर जाने का औचित्य समझना कठिन है। इसकी कहीं कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन देश भर में वकीलों के विभिन्न समूहों ने न्यायिक कार्य से विरत रहना जरूरी समझा। इसके चलते देश के कई उच्च न्यायालयों में भी वादकारियों को निराश होना पड़ा। क्या कोई इस पर विचार करेगा कि वकीलों की हड़ताल से देश भर में जो लाखों परेशान हुए उनका क्या दोष था? आखिर उन्हें किस बात की सजा मिली?

कानून की रक्षक पुलिस और कानून के सहायक वकीलों के बीच रिश्ते किस तरह बिगड़ रहे हैं, इसका एक नमूना गत दिवस कानपुर में भी देखने को मिला। यहां वकीलों और पुलिस कर्मियों के बीच मामूली विवाद के बाद वकीलों ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय का घेराव करने का फैसला किया। इस घेराव के दौरान पत्थरबाजी के साथ तोड़फोड़ भी की गई। क्या इसकी जरूरत थी? दुर्भाग्य यह है कि अब ऐसा ही अधिक होता है। आखिर विरोध दर्ज कराने के लिए हिंसा का सहारा लेने का क्या मतलब? चिंता की बात यह है कि वकीलों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव अब बहुत आम हो गया है।

देश के किसी न किसी हिस्से में वकीलों और पुलिस के बीच रह-रहकर वैसा टकराव देखने को मिलता ही रहता है जैसा पहले दिल्ली और फिर कानपुर में देखने को मिला। इन दोनों घटनाओं के कुछ दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश के बिजनौर में वकील और पुलिस आमने-सामने आ गए थे। यह ठीक नहीं कि तीसहजारी अदालत परिसर की घटना का हिंसक विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। गत दिवस भी दिल्ली में कुछ अन्य अदालत परिसरों में वकीलों ने उग्रता तो दिखाई ही, वे पुलिस को निशाना बनाते भी दिखे।

नि:संदेह वकीलों और पुलिस के बीच हिंसक टकराव की घटनाओं पर किसी एक पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह की घटनाओं में कभी पुलिस का मनमाना व्यवहार जिम्मेदार होता है तो कभी वकीलों का। कई बार दोनों पक्ष समान रूप से जिम्मेदार होते हैं। कहना कठिन है कि तीस हजारी की घटना के लिए कौन कितना जिम्मेदार है, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि दोनों पक्षों की ओर से संयम का परिचय नहीं दिया गया। जब जिसे मौका मिला उसने अराजकता का परिचय दिया। जैसे पुलिस का मनमाना व्यवहार नया नहीं उसी तरह यह भी सही है कि वकीलों के समूह भी जब-तब हिंसा का सहारा लेना पसंद करते हैं। यह एक तरह की भीड़ का हिंसा का ही रूप है। इस पर रोक लगनी जरूरी है।