यह बिल्कुल अच्छा नहीं हुआ कि शराब की दुकानें खुलते ही उनके आगे जमा हुई भारी भीड़ ने शारीरिक दूरी बनाए रखने की ऐसी उपेक्षा कि लॉकडाउन की तपस्या भंग होती दिखाई दी। राज्य सरकारों और उनके स्थानीय प्रशासन को इसका आभास होना चाहिए था कि शराब बिक्री की अनुमति मिलने पर उनकी दुकानों पर अफरातफरी मच सकती है। ज्यादातर स्थानों पर ऐसा ही हुआ और इसकी एक बड़ी वजह यही रही कि लोगों ने जल्द शराब खरीदने की ललक में संयम और अनुशासन को ठेंगा दिखा दिया। समझना कठिन है कि शराब खरीदने की ऐसी भी क्या जल्दी थी? यदि बीते 40 दिन से उसके बगैर काम चल रहा था तो फिर कुछ दिन और संयम का परिचय देने में क्या बिगड़ा जा रहा था?

नि:संदेह सवाल यह भी है कि जब अन्य अनेक वस्तुओं की बिक्री पर पाबंदी बरकरार है तब फिर शराब की बिक्री को लेकर उदारता दिखाने की क्या जरूरत थी? जो भी हो, शराब खरीदने को लेकर अनावश्यक बेसब्री और हड़बड़ी दिखाए जाने का परिणाम यह रहा कि कई जगहों पर उसकी बिक्री बंद करानी पड़ी। इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था, क्योंकि लोग न्यूनतम सर्तकता का परिचय देने से भी इन्कार कर रहे थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि ऐसा तब किया गया जब हर कोई इससे परिचित है कि शारीरिक दूरी को लेकर बरती जाने वाली सजगता ही कोरोना के कहर से बचे रहने का एक कारगर उपाय है।

यह अजीब है कि शराब की दुकानों के आगे शारीरिक दूरी को ताक पर रखकर लंबी लाइनें तब लगीं जब अपने देश में अभी भी शराब के सेवन को निषेध माना जाता है। निषेध माने वाली चीज के प्रति जैसी दीवानगी दिखाई गई उससे तो यही लगता है कि कुछ लोग यह समझने से जानबूझकर इन्कार कर रहे हैं कि अभी देश-दुनिया को कोरोना के साये में ही जीना होगा और इसके लिए जरूरी सावधानी का परिचय हर क्षण देना होगा। बेहतर हो कि केंद्र और राज्य सरकारें यह समझें कि आने वाले दिनों में उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि शराब बिक्री की इजाजत इसीलिए दी गई, क्योंकि उससे होने वाली आय राज्य सरकारों के राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है और कई राज्य केंद्र सरकार पर इसके लिए दबाव भी बना रहे थे। शराब के लिए जैसी मारा-मारी मची उससे तो यही लगता है कि केंद्र सरकार उसे आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रख देती तो बेहतर होता। इससे जिनके सब्र का पैमाना छलक उठा उनका भी काम चलता रहता और राज्य सरकारें भी राजस्व हानि को लेकर हल्ला नहीं मचातीं।