प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज पर पानीपत के लघु सचिवालय में जानलेवा हमला दुर्भाग्यपूर्ण है। घटना को किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह स्पष्ट रूप से पुलिस और प्रशासनिक प्रबंधों में गंभीर चूक है। सीधा सवाल खड़ा हो रहा है कि प्रशासन अगर लघु सचिवालय की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता तो आम आदमी खुद को कैसे सुरक्षित समझे। लघु सचिवालय का सुरक्षा घेरा इसलिए भी मजबूत होना चाहिए कि वहां न्यायपालिका और कार्यपालिका के जिलास्तरीय शीर्ष अधिकारियों की निश्चित कार्य अवधि में उपस्थिति सुनिश्चित रहती है। किसी भी शिकायत पर प्रशासन और न्यायपालिका के फैसले से एक पक्ष खुश और दूसरा नाखुश होगा ही। सही और गलत का फैसला करने का काम न्यायपालिका का है, परंतु कोई कानून हाथ में न ले सके, इसके लिए तो प्रशासन को ही सतर्क होना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीड़न निरोधक अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने के लिए दी गई व्यवस्था का इससे प्रभावित लोगों द्वारा विरोध स्वाभाविक है।

कोर्ट ने विभिन्न वर्षों के उन आंकड़ों को आधार बनाया है, जिनके अनुसार इस अधिनियम के तहत केस होने के कारण आरोपित बिना देरी के गिरफ्तार कर जेल तो भेजे जाते रहे, परंतु दो तिहाई मामलों में कानून को उन्हें बरी करना पड़ा। यह भी रेखांकित करने वाली बात है कि केंद्र सरकार की तरफ सें सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की स्पष्ट घोषणा की जा चुकी है। ध्यान देना होगा कि न्याय के लिए यह भी महत्वपूर्ण अवधारणा है कि किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। दो युवकों ने जिस तरह से मंत्री पर पत्थर से हमला बोला, वह खुद ही संकेत दे रहा है कि उन्हें भड़काने वाले कोई और हैै। पुलिस के लिए चुनौती है कि साजिश रचने वालों की सजा सुनिश्चित कराए।

[ स्थानीय संपादकीय: हरियाणा ]