केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर तैयार करने के काम को हरी झंडी देकर वही किया जिसे मनमोहन सरकार ने करने का बीड़ा 2010 में उठाया था। इतना ही नहीं, नागरिकता कानून में संशोधन कर एनपीआर तैयार करने संबंधी प्रावधान भी 2004 में मनमोहन सरकार के समय जोड़ा गया था। इन तथ्यों के बाद राजनीतिक रोटियां सेंकते विपक्षी दल न सही, आम जनता के समक्ष यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि मोदी सरकार कोई नया काम करने नहीं जा रही है। यह समझा जाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि एनपीआर तैयार करने की घोषणा होते ही यह दुष्प्रचार शुरू हो गया है कि यह तो पिछले दरवाजे से एनआरसी यानी नागरिकता रजिस्टर तैयार करने की कोशिश हो रही है।

दुष्प्रचार के इस दौर में यह भी समझने की जरूरत है कि एनआरसी तैयार करना भी कोई गैर-जरूरी काम नहीं। दुनिया के हर जिम्मेदार देश ने यह काम किया है। चूंकि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर लोगों को गुमराह करने का काम अभी भी चालू है इसलिए इसकी प्रबल आशंका है कि एनपीआर को लेकर भी ऐसा ही किया जाएगा। सरकार को इसकी काट करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

नि:संदेह ऐसे सवाल उठना स्वाभाविक हैं कि आखिर जनगणना के अतिरिक्त एनपीआर तैयार करने की क्या जरूरत है? यह एक सही सवाल है, लेकिन इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि जनगणना के जरिये एकत्रित किया जाना वाला विवरण सरकारी योजनाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं। एनपीआर से मिली जानकारी से जन कल्याणकारी योजनाओं को कहीं अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी। वैसे भी जनगणना की प्रक्रिया एनपीआर से इतर है। जनगणना एक अलग कानून के तहत होती है।

हालांकि एनपीआर तैयार करने का कैबिनेट का फैसला आते ही गृहमंत्री अमित शाह ने उन कई सवालों का जवाब दिया जो उठने शुरू हो गए थे, लेकिन बेहतर होगा कि सरकार आगे भी यह सिलसिला कायम रखे ताकि विपक्षी दल अपने दुष्प्रचार से लोगों को भ्रमित न करने पाएं। यह सतर्कता बरतनी इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि कई राज्य सरकारें एनपीआर से पीछे हटने का दिखावा कर सकती हैं।

यह संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए जनता के हितों से खिलवाड़ करने वाली राजनीति के अलावा और कुछ नहीं होगा। सच तो यह है कि यह गरीब विरोधी राजनीति होगी, क्योंकि यदि एनपीआर सही तरह तैयार नहीं होता तो इससे सबसे अधिक नुकसान निर्धन तबके का ही होगा। जो राजनीतिक दल पहले से ही नागरिकता कानून, एनआरसी और अब एनपीआर पर लोगों को भड़का रहे हैं वे यह समझें तो बेहतर कि राजनीतिक क्षुद्रता की भी एक सीमा होती है।