यौन शोषण के मामलों को उजागर करने के लिए अमेरिका में मी टू नाम से शुरू हुआ अभियान दुनिया के अन्य देशों में असर दिखाने के बाद भारत में भी हलचल पैदा कर रहा है। भारत में इस अभियान का असर दिखना इसलिए अच्छा है, क्योंकि यह एक सच्चाई है कि अपने यहां भी महिलाओं का यौन शोषण किया जाता है। वस्तुत: यह सदियों से होता चला आ रहा है। समर्थ-सक्षम लोग अपने पद या प्रभाव का बेजा इस्तेमाल कर महिलाओं को अपनी यौन लिप्सा का शिकार बनाते हैैं।

हाल में फिल्मी दुनिया के साथ ही अन्य क्षेत्रों में यौन शोषण के जो कुछ बेहद चर्चित या फिर एक दायरे तक सीमित मामले सामने आए हैैं वे तो महज बानगी भर हैैं। यह सहज ही समझा जा सकता है कि यौन प्रताड़ना का शिकार हुई तमाम महिलाएं ऐसी होंगी जो अपनी आपबीती बयान करने का साहस नहीं जुटा पा रही होंगी। नि:संदेह यह मी टू अभियान के प्रति भारतीय समाज के रुख-रवैये पर निर्भर करेगा कि यौन प्रताड़ना से दो-चार हुई महिलाएं भविष्य में अपनी आपबीती बयान करने के लिए आगे आती हैैं या नहीं? जो भी हो, यौन शोषण के हाल के जो मामले सामने आए हैैं वे यही प्रकट कर रहे हैैं कि अब महिलाएं चुप बैठने वाली नहीं हैैं।

यदि समाज को यह संदेश सही तरह जाता है कि महिलाओं की किसी मजबूरी का लाभ उठाकर उनका दैहिक शोषण करने वाले देर-सबेर बेनकाब होने के साथ ही शर्मसार हो सकते हैैं तो फिर ऐसे तत्वों पर लगाम लग सकती है। यह लगाम लगनी ही चाहिए, लेकिन यह काम केवल यौन शोषण रोधी सक्षम कानूनों और अदालतों की सक्रियता एवं संवेदनशीलता से ही नहीं होने वाला। समाज को भी अपना रवैया बदलना होगा ताकि प्रथमदृष्टया दोषी दिखने वाले नरमी के हकदार न बनने पाएं।

पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का शोषण एक कटु सत्य है, लेकिन मी टू अभियान की अपनी सीमाएं भी हैैं। इसमें संदेह है कि यौन शोषण के जो मामले सामने आए हैैं उनमें कठघरे में खड़े और लांछित हो रहे लोगों को आसानी से दंडित किया जा सकता है। एक तो चार-छह-दस साल पुरानी घटना के प्रमाण मिलना कठिन हैैं और दूसरे उन्हें साबित करना भी मुश्किल है।

एक समस्या यह भी है कि खराब आचरण और यौन प्रताड़ना के बीच एक विभाजन रेखा है। कुछ मामलों में यह विभाजन रेखा खत्म होती सी दिखती है। इसी तरह इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी हाल में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से नामित ब्रेट कैवनॉघ यौन शोषण के आरोपों से घिरने के बाद भी न्यायाधीश की शपथ लेने में कामयाब रहे। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि सुबूतों के अभाव में उनके खिलाफ लगे आरोप प्रमाणित नहीं हो सके। इसी कारण तमाम विरोध के बावजूद सीनेट ने उनके नाम को मंजूरी प्रदान की। ऐसा ही अन्य मामलों में भी हो सकता है।

यह कहना कठिन है कि भारत में सहसा शुरू हुए मी टू अभियान का अंजाम क्या होगा, लेकिन महिलाओं को यौन शोषण से बचाए रखने वाले माहौल का निर्माण हर किसी की प्राथमिकता में होना चाहिए।