आधार की उपयोगिता स्वत: सिद्ध है, लेकिन संकीर्ण राजनीतिक कारणों और अंध वैचारिक विरोध भाव के चलते उसका विरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कहना कठिन है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से आधार के जो फायदे गिनाए गए उसके बाद उसके विरोधी उसकी उपयोगिता को लेकर नीर-क्षीर ढंग से विचार करेंगे या नहीं, लेकिन आम जनता को यह अवश्य देखना चाहिए कि यह विशिष्ट पहचान पत्र उनके कितने काम का साबित हो रहा है। इस सिलसिले में इन आंकड़ों पर गौर किया ही जाना चाहिए कि आधार आधारित बैंक खातों के जरिये करीब छह करोड़ उज्ज्वला लाभार्थियों को रसोई गैस सब्सिडी दी जा रही है और लगभग दस करोड़ मनरेगा कार्डधारकों को उनकी मजदूरी का भुगतान भी किया जा रहा है। इसी प्रकार राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के दो करोड़ लाभार्थियों को भी आधार के जरिये उनके खातों में भुगतान किया जा रहा है।

एक उत्साहजनक आंकड़ा यह भी है कि आधार के उपयोग से सालाना 77,000 करोड़ रुपये की बचत की जा सकती है। इसी को रेखांकित करते हुए वित्त मंत्री ने यह कहा कि आधार की बचत से आयुष्मान भारत जैसी तीन योजनाएं चलाई जा सकती हैं। आधार केवल सामाजिक एवं जनकल्याण की योजनाओं को सही तरह से संचालित करने में ही सहायक नहीं है, बल्कि वह बिचौलियों और भ्रष्ट तत्वों पर लगाम लगाने में भी कामयाब है। हालांकि आधार के इस्तेमाल से गुमनाम और फर्जी लाभार्थियों को हटाने में जो मदद मिली है वह किसी से छिपी नहीं, फिर भी तरह-तरह के कुतर्कों का सहारा लेकर उसका विरोध किया जा रहा है।

आधार के विरोध का एक बड़ा बहाना निजता में कथित सेंध है। समझना कठिन है कि जिन निर्धन और वंचित लोगों को टूटी झोपड़ियों में गुजारा करना पड़ रहा है उनकी किस निजता का हवाला दिया जा रहा है? माना कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है, लेकिन उसके आदेश की मनमानी व्याख्या करके समाज कल्याण की योजनाओं पर अड़ंगा लगाना तो राजनीतिक शरारत ही है। दुर्भाग्य से कुछ लोग ऐसा ही करने में लगे हुए हैं। इससे भी बड़े दुर्भाग्य और हैरानी की बात यह है कि ऐसे लोगों में उस कांग्रेस के नेता भी शामिल हैं जो एक तरह से आधार की जनक है।

अगर कांग्रेस सत्ता में रहते समय आधार का इस्तेमाल सही तरह नहीं कर सकी तो अब उसे अपनी खीझ उस पर निकालने से क्या हासिल होने वाला है? कांग्रेस की ओर से आधार के इस्तेमाल का बेजा विरोध यही बताता है कि राजनीतिक संकीर्णता किस तरह जन विरोधी राजनीति में तब्दील हो जाती है। आज के डिजिटल युग में जब आधार योजना दुनिया के लिए प्रेरणास्नोत बन रही है तब उसके अमल का दायरा बढ़ाने की कोशिश पर हाय-तौबा मचाना वैचारिक दीनता का प्रदर्शन ही है। एक ऐसे समय आधार संशोधन विधेयक के विरोध का कोई औचित्य नहीं बनता जब सरकार डाटा संरक्षण संबंधी विधेयक तैयार करने के साथ ही बार-बार यह भी स्पष्ट कर रही है कि उक्त विधेयक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप है और उससे निजता के अधिकारों का कहीं कोई हनन नहीं होने वाला।