मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने बहुमत परीक्षण का सामना करने के बजाय जिस तरह कोरोना वायरस से उपजी महामारी का हवाला देकर विधानसभा सत्र को टाल दिया उससे लगता नहीं कि उसका भविष्य सुरक्षित होने वाला है। एक ओर जहां भाजपा कमलनाथ सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है वहीं दूसरी ओर राज्यपाल ने 24 घंटे के अंदर फिर से बहुमत परीक्षण का निर्देश दे दिया है।

अपने इस निर्देश के उल्लंघन की स्थिति में वह राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकते हैं। जो भी हो, इसके आसार कम हैं कि 22 विधायकों की बगावत के बाद कमलनाथ सरकार बची रहेगी। उसका वही हश्र हो सकता है जो कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार का हुआ था।

जो कर्नाटक में हुआ और जो मध्य प्रदेश में होने के आसार हैं वह पहले भी होता रहा है। चूंकि आगे भी ऐसा होते रह सकता है इसलिए विचार इस पर होना चाहिए कि आखिर सरकारों का गठन जनादेश के हिसाब से कैसे हो और उन्हें अस्थिरता से कैसे बचाया जाए? इस तरह के सवालों का सही जवाब तभी मिलेगा जब चुनावी सुधारों के साथ राजनीतिक सुधारों की दिशा में भी आगे बढ़ा जाएगा। जहां चुनावी सुधार इस दृष्टि से होने चाहिए कि राजनीतिक दल जनादेश का मनमाना इस्तेमाल न करने पाएं वहीं राजनीतिक सुधार यह सुनिश्चित करने के लिए होने चाहिए कि जनता की ओर से चुनी गई सरकार से वैसी कोई छेड़छाड़ न होने पाए जैसी रह-रह कर होती रहती है।

चूंकि राजनीतिक दल तात्कालिक लाभ के फेर में रहते हैं और जब जिसे मौका मिलता है वही येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करने में जुट जाता है इसलिए आवश्यक सुधारों की पहल या तो निर्वाचन आयोग को करनी चाहिए या फिर सुप्रीम कोर्ट को। किसी लोभ-लालच में दलबदल किया जाना जनादेश को ठेंगा दिखाने के साथ ही लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रहार भी है।

इसका कोई मतलब नहीं कि जनता जिस दल को शासन करने का अधिकार दे वह अपने विधायकों या सांसदों की बगावत के चलते सत्ता से बाहर हो जाए। आम तौर पर यह बगावत मौकापरस्ती ही होती है। इस मौकापरस्ती से बचने के लिए ऐसे नियम-कानून बनने ही चाहिए जिससे किसी चुनी हुई सरकार को एक निश्चित समय तक शासन करने का मौका मिल सके। जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को अस्थिरता की आशंका से मुक्त करके ही बेहतर शासन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। ऐसी सरकारें सुशासन की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकतीं जो अपनी स्थिरता को लेकर चिंतित बनी रहें। मध्य प्रदेश में जो कुछ हो रहा है उससे सबसे अधिक नुकसान वहां की जनता को ही हो रहा है।