इंट्रो
केंद्रीय टीम ने कांगड़ा के पौंग बांध विस्थापितों को उनका हक दिलाने की उम्मीद जगाई है। इस मामले में राजस्थान सरकार को आगे आना चाहिए।
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पौंग बांध विस्थापितों को उनकी मांगें माने जाने की उम्मीद फिर जगी है। विस्थापितों की समस्याएं सुनने हाई पावर कमेटी के चेयरमैन और केंद्रीय जलसंसाधन मंत्रालय के सचिव अमरजीत सिंह सहित अधिकारियों की टीम कांगड़ा के फतेहपुर पहुंची। अधिकारियों को विस्थापितों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने पांच दशक बाद भी भूमि न मिलने के लिए राजस्थान के साथ हिमाचल सरकार पर भी भड़ास निकाली। विस्थापितों ने बताया कि 1965 में पौंग बांध का निर्माण शुरू हुआ था। केंद्र और राजस्थान सरकार के बीच हुए समझौते के तहत श्रीगंगानगर जिले में दो लाख एकड़ भूमि विस्थापितों के लिए रिजर्व रखी थी। अभी सात हजार विस्थापितों को ही भूमि मिल पाई है। बाकी के लोग ठोकरें खा रहे हैं। चेयरमैन ने बताया कि जमीन से जुड़े 1165 मामले राजस्थान सरकार को भेजे गए हैं। उनसे पंद्रह दिन में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। इसके अलावा जल्द ही दो बैठकें हो रही हैं। केंद्र दूसरे विकल्प पर भी विचार कर रहा है। इसमें नर्मदा विस्थापितों की तर्ज पर एकमुश्त मुआवजा राशि दी जा सकती है। पौंग विस्थापितों के मामले से तीन सरकारें जुड़ी हैं। केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार और हिमाचल सरकार। हिमाचल सरकार अपने राज्य के विस्थापितों का मुद्दा केंद्र और राजस्थान सरकार से कई बार उठा चुकी है। बीच-बीच में प्रतिनिधिमंडल राजस्थान का दौरा कर मामला उठाते रहे हैं और अब भी उठा रहे हैं। यहां केंद्र सरकार को चाहिए कि देश की खुशहाली के लिए अपने पैतृक घर कुर्बान करने वाले विस्थापितों को उनके हक दिलाने के लिए हस्तक्षेप करे। केंद्र राजस्थान सरकार पर दबाव बनाकर इस मामले का हल निकाल सकता है। असल में पौंग विस्थापितों की मांगें पांच दशक तक पूरी न होने के पीछे बड़ा कारण राजस्थान सरकार और वहां के प्रशासन का सहयोग न मिल पाना है। एक तो राजस्थान सरकार ऐसी जगह भूमि दे रही है, जहां पौंग विस्थापित नहीं लेना चाहते। दूसरा जिन लोगों को भूमि मिल रही है, वहां के स्थानीय लोग यह नहीं चाहते कि कांगड़ा के लोग उनके क्षेत्र में बस पाएं। कई विस्थापितों से स्थानीय प्रभावशाली लोग दुव्र्यवहार कर चुके हैं। इस कारण उन्हें वहां से भूमि छोड़कर भागना पड़ा। इस तरह के मामलों में राजस्थान सरकार की भूमिका बड़ी हो जाती है। सरकार को चाहिए कि विस्थापितों को बसाने के लिए पुलिस-प्रशासन को सख्ती से निर्देश दे। अगर किसी विस्थापित के साथ गुंडागर्दी की जाती है तो आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होना जरूरी है।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]