तेजी से काम करे कानून
संदेह के कठघरे में खड़े नेता सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई को अपने पक्ष में भुनाने और राजनीतिक लाभ अर्जित करने की भी कोशिश करते हैं।
केंद्रीय एजेंसियों की मानें तो उनके पास ऐसे प्रमाण हैं जिनसे यह साबित होता है कि लालू यादव के परिजनों के साथ-साथ पी चिदंबरम के बेटे कार्ति ने छल-छद्म से बेनामी संपत्तियां हासिल की हैं। यदि वाकई ऐसा है तो फिर उनके खिलाफ तेजी के साथ ठोस कार्रवाई होनी चाहिए। घपले-घोटाले के गंभीर आरोपों से घिरे नेताओं अथवा उनके परिजनों के ठिकानों पर छापेमारी और उनके खिलाफ छानबीन को पर्याप्त इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कई बार इस तरह की कार्रवाई के बाद कुछ होता नहीं दिखता। नेताओं और अन्य रसूख वालों के मामले में तो ऐसा खास तौर पर होता है। कई मामलों में यह देखने में आया है कि छापेमारी अथवा प्रारंभिक रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जांच थम सी जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि संदेह के कठघरे में खड़े नेता इस घिसे हुए आरोप की शरण में चले जाते हैं कि राजनीतिक बदले की भावना के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। वे सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई को अपने पक्ष में भुनाने और राजनीतिक लाभ अर्जित करने की भी कोशिश करते हैं। कुछ नेता इसमें खासे माहिर हैं। इन दिनों लालू यादव और चिदंबरम अपनी इसी महारत का प्रदर्शन कर रहे हैं। जहां लालू यादव अपने लोगों को यह समझाने में लगे हुए हैं कि भाजपा उनकी बढ़ती राजनीतिक आभा से घबराई हुई है वहीं चिदंबरम यह रेखांकित करने में लगे हुए हैं कि सरकार उनके धारदार लेखन से परेशान होकर उनका मुंह बंद करने की कोशिश में है। हालांकि ऐसे आरोपों पर भाजपा नेताओं का जवाब यही है कि कानून अपना काम कर रहा है, लेकिन बेहतर होगा कि नेताओं के मामले में कानून अपना काम तेजी से करना और जल्द ठोस नतीजा देना सीखे। पता नहीं नेताओं के मामले में जांच एजेंसियां तत्परता का प्रदर्शन क्यों नहीं कर पातीं?
लालू यादव चाहे जितने बड़े बोल बोलें और ऐसे भी सवाल क्यों न करें कि कैसी छापेमारी-कहां छापेमारी, लेकिन सबको पता है कि चारा घोटाले में उन्हें सजा सुनाई जा चुकी है। इसी तरह चिदंबरम के बारे में भी सब जानते हैं कि वह बड़े वकील भले हों, लेकिन कई मामलों मेंउन पर पद का दुरुपयोग करने और अपने परिजनों को अनुचित लाभ पहुंचाने के आरोप लग चुके हैं। ऐसे आरोपों का यह कोई जवाब नहीं हो सकता कि सरकार उनका कुछ नहीं कर सकती, इसलिए उनके बेटे पर निशाना साध रही है। लालू यादव और चिदंबरम के परिजनों के खिलाफ जांच का नतीजा चाहे जो हो, कोई यह बताए कि ज्यादातर नेताओं के परिजन अकूत संपत्ति के स्वामी कैसे बन जाते हैं? अच्छा हो कि इस सवाल का जवाब खुद लालू यादव और चिदंबरम ही दें, क्योंकि यह बात हजम नहीं हो रही कि उनके साथियों-परिचितों ने उनके प्रति आदरभाव के चलते अपनी संपत्ति उनके बेटे-बेटियों के नाम कर दी। यह जुमलेबाजी के अलावा और कुछ नहीं। इस जुमलेबाजी की हवा तभी निकलेगी जब जांच एजेंसियां दूध का दूध और पानी का पानी करने में समर्थ होंगी। यह ठीक नहीं कि जांच के घेरे वाले नेताओं की संख्या तो बढ़ती जा रही है, लेकिन चंद मामले ही ऐसे हैं जिनमें ठोस नतीजा सामने आने की उम्मीद जगी हो।
[ मुख्य संपादकीय ]