भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने के उपाय सुझाने वाली सचिवों की एक समिति की रपट पर विचार करने के दौरान यदि वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री इस नतीजे पर पहुंचे कि गवाहों की सुरक्षा का कानून बनाया जाना चाहिए तो फिर यह काम प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि भीड़ की हिंसा के मामले बढ़ते चले जा रहे हैैं। ये मामले न केवल कानून एवं व्यवस्था के समक्ष चुनौती खड़ी कर रहे हैैं, बल्कि देश की बदनामी भी करा रहे हैैं। गत दिवस ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्मादी भीड़ की हिंसा के एक मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि इस घटना की जांच मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की देखरेख में की जाए।

भीड़ की हिंसा के बढ़ते मामले कहीं न कहीं कानून हाथ में लेने की प्रवृत्ति को रेखांकित कर रहे हैैं। ऐसे मामलों में आम तौर पर संदिग्ध बच्चा चोरों और पशु चोरों को निशाना बनाया जा रहा है। कई बार अन्य संदिग्ध लोग भी उन्मादी भीड़ का शिकार बन जाते हैैं। इनमें कई तो संदिग्ध भी नहीं होते, लेकिन किसी कारण संदेह के दायरे में आ जाते हैैं या फिर किसी अफवाह का शिकार हो जाते हैैं। ऐसी अफवाहें फैलाने में सोशल मीडिया और खासकर वाट्सएप की भूमिका रहती है। इन कंपनियों का यह दायित्व है कि वे अफवाहों पर रोक लगाने को लेकर गंभीरता दिखाएंं। यह ठीक नहीं कि इस मामले में सोशल मीडिया कंपनियां आनाकानी ही करती दिख रही हैैं। ऐसी कंपनियों को जवाबदेही के दायरे में लाया जाना चाहिए, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि केवल इतने से बात नहीं बनेगी। इसी तरह इसमें भी संदेह है कि केवल गवाहों की सुरक्षा का कानून बन जाने से उन्मादी भीड़ की हिंसा के मामले थमेंगे।

यह सही है कि गवाहों की सुरक्षा देने वाले किसी कानून का निर्माण समय की मांग है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भीड़ की हिंसा वाली घटनाओं में शामिल तत्व आम तौर पर कानून से भय ही नहीं खाते। यह भी किसी से छिपा नहीं कि इस तरह के मामलों की जांच और सुनवाई में लंबा समय लगता है। बीते एक साल में भीड़ की हिंसा के करीब 40 मामले सामने आ चुके हैैं, लेकिन शायद ही किसी में आरोपित को सजा सुनाई गई हो। बेहतर हो कि सचिवों की समिति की ओर से तैयार की गई रपट पर विचार कर रही वरिष्ठ मंत्रियों की समिति यह समझे कि भीड़ की हिंसा के मामलो का त्वरित निस्तारण ही इस तरह की घटनाओं की रोकथाम में प्रभावी सिद्ध होगा।

किसी कारण किसी निर्दोष या फिर संदिग्ध शख्स के प्रति भीड़ की हिंसा सभ्य समाज को शर्मिंदा करती है। नि:संदेह जहां कहीं भी कानूनों में कमी या फिर विसंगति हो तो उसे दूर किया जाना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रहे तो बेहतर कि सक्षम कानून तभी असर दिखाते हैैं जब उनके अमल की इच्छाशक्ति भी प्रदर्शित की जाती है। स्पष्ट है कि केंद्रीय मंत्रियों की समिति का मूल उद्देश्य एक और कानून बनाना ही नहीं, बल्कि उस पर प्रभावी तरीके से अमल की राह खोजना भी होना चाहिए।