जम्मू-कश्मीर के रोशनी भूमि घोटाले में जिस तरह राज्य के कई बड़े नेताओं के सामने आए हैं उससे यही पता चलता है कि धांधली को शीर्ष स्तर पर संरक्षण मिला हुआ था। इस संरक्षण के कारण ही इस पर हैरानी नहीं कि घोटाले में प्रमुख नेताओं के साथ-साथ नौकरशाह, व्यापारी एवं अन्य प्रभावशाली लोगों के भी नाम सामने आ रहे हैं। अभी तक के आकलन के अनुसार यह घोटाला करीब 25,000 करोड़ रुपये का है। इसका मतलब है कि जिन लोगों पर सरकारी संपत्ति की देखरेख की जिम्मेदारी थी उन्होंने ही उसकी लूट की। यह एक तरह से बाड़ खेत को खाए वाला मामला लगता है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ सकता कि इस घोटाले में एक बड़ी संख्या में लोगों के नाम सामने आ गए हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है, क्योंकि आवश्यकता इस बात की है कि घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई भी की जाए।

यह घोटाला सामने आने के बाद गुपकार गठजोड़ को गुपकार गैंग की संज्ञा देना उचित ही जान पड़ता है। जिस तरह नेशनल काफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस ने सरकारी जमीनों की खुलकर बंदरबांट की और उसमें अपने रिश्तेदारों के साथ-साथ मित्रों और परिचितों को भी लाभान्वित किया उससे तो यही लगता है कि कहीं कोई रोकटोक नहीं थी और न ही किसी के मन में इसका भय था कि यदि कभी सच्चाई सामने आई तो क्या होगा।

रोशनी योजना में धांधली के जैसे तथ्य सामने आ रहे हैं वे यह भी बताते हैं कि कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों ने संसाधनों को दोनों हाथों से मनमाने तरीके से लूटा। यह तो गनीमत रही कि मामला हाई कोर्ट के पास गया और उसने सीबीआइ को जांच के आदेश दिए अन्यथा हजारों करोड़ रुपये का यह घोटाला तो दबा ही रहता। आखिर यह तथ्य है कि हाई कोर्ट को पूर्व की जांच एजेंसियों को इसके लिए फटकार लगानी पड़ी कि उन्होंने अपना काम सही तरीके से नहीं किया। इस घोटाले ने इस आवश्यकता को नए सिरे से रेखांकित किया है कि सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की निगरानी की जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए। इसके अलावा यह भी देखा जाना चाहिए कि कहीं इसी तरह के अन्य घोटाले तो अंजाम नहीं दिए गए।

यह घोटाला इसलिए कहीं अधिक लज्जाजनक है, क्योंकि रोशनी एक्ट कथित तौर पर गरीबों की भलाई करने के इरादे से लाया गया था, लेकिन जो नेता इस एक्ट को लाए उन्होंने गरीबों का हित करने के बजाय खुद का घर भरना शुरू कर दिया। विडंबना यह रही कि एक के बाद एक सरकारों ने इस घोटाले को रोकने के बजाय उसमें भागीदारी करना जरूरी समझा।