मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के वायरल हुए वीडियो पर पार्टी का कुछ भी कहना हो, यह तय है कि उसने भाजपा को बैठे-बिठाए एक मुद्दा देने के साथ ही अपनी संकीर्ण सोच और दोहरी नीति की पोल भी खोल दी। इस वीडियो में कमलनाथ मुस्लिम समाज के लोगों से यह कहते हुए सुनाई-दिखाई दे रहे हैैं कि अगर मुस्लिम इलाकों में 90 प्रतिशत वोट नहीं पड़े तो कांग्रेस का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा। इसी वीडियो का जो हिस्सा पहले सामने आया था उसमें भी वह मुस्लिम समाज का कुल मिलाकर तुष्टीकरण ही कर रहे थे।

कमलनाथ के वीडियो वाले विचारों ने कांग्रेस के लिए कितनी बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है, यह इससे साबित होता है कि उससे कुछ साफ-साफ बोलते नहीं बन रहा। कुछ कांग्रेसी प्रवक्ता गोलमोल सफाई देते हुए यह कह रहे हैैं कि हमारे नेता तो मतदान प्रतिशत बढ़ाने की बात कर रहे थे। अगर वाकई वह ऐसा ही कर रहे थे तो क्या भाजपा नेताओं को ऐसा कुछ कहने का अधिकार देंगे कि यदि हिंदू समाज ने 90 प्रतिशत वोट नहीं डाले तो उनका बड़ा नुकसान हो जाएगा? चुनाव आयोग इस वीडियो को लेकर चाहे जिस नतीजे पर पहुंचे, कमलनाथ ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति और साथ ही सांप्रदायिक राजनीति को नए सिरे से रेखांकित किया है।

कमलनाथ का वीडियो ऐसे समय पर आया है जब राहुल गांधी शिवभक्त और जनेऊधारी ब्राह्मण की उपाधि के साथ मंदिर-मंदिर जाकर यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैैं कि वह हिंदू समाज के भी साथ हैैं। शायद इसी कड़ी में चंद दिन पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस की ओर से जारी घोषणा पत्र में राम गमन एवं नर्मदा परिक्रम पथ बनाने, गौशालाएं खुलवाने, अलग आध्यात्मिक विभाग गठित करने जैसे तमाम वादे किए गए। ऐसे वायदों के साथ ही मुस्लिम समाज को अपने पक्ष में थोक में वोट करने की नसीहत देकर कांग्रेस ने अपने दोहरे चरित्र को ही बेनकाब किया। यह एक तरह से मुख में राम बगल में छुरी वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली राजनीति है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने दो नावों पर सवारी करने का फैसला किया है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि राजस्थान में उसके एक और वरिष्ठ नेता सीपी जोशी ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर तो कांग्रेसी प्रधानमंत्री के हाथों ही होगा।

अच्छा होता कि वह यह भी बताते कि क्या इसी इरादे के तहत उनके सहयोगी कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दे रहे थे कि अयोध्या मामले की सुनवाई अगले आम चुनाव तक टाल देनी चाहिए? ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपने पुरानी आदतों के साथ ही अपने चेहरे पर नया रंग-रोगन करने में जुटी है। क्या विडंबना है कि जो कांग्रेस खुद को हिंदू हितैषी दिखाने की कोशिश कर रही वही कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले लिंगायतों को हिंदू समाज से अलग करने की दिशा में कदम बढ़ा रही थी। यह भी किसी से छिपा नहीं कि गुजरात चुनाव के समय राहुल गांधी एक ओर मंदिरों की शरण में थे और दूसरी ओर राज्य के धुर जातिवादी नेताओं को गले भी लगा रहे थे।