जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के मामले में दिल्ली पुलिस की ओर से पेश किए गए प्रारंभिक तथ्यों से यदि कुछ रेखांकित हो रहा है तो यही कि दोनों पक्षों के छात्र किसी ने किसी रूप में हिंसक गतिविधियों में शामिल थे। चूंकि अभी पुलिस की जांच पूरी नहीं हुई और उसकी ओर से नकाबधारी तत्वों को बेनकाब किया जाना भी शेष है इसलिए किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। दिल्ली पुलिस को न केवल जल्द से जल्द अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना होगा, बल्कि हिंसा में लिप्त तत्वों के खिलाफ ऐसे पुख्ता सुबूत भी जुटाने होंगे जिससे अराजक तत्वों को दंड का भागीदार बनाया जा सके। उसे यह काम प्राथमिकता के आधार पर इसलिए करना होगा, क्योंकि यदि उसने जेएनयू परिसर की हिंसक गतिविधियों पर समय रहते आवश्यक कार्रवाई की होती तो शायद जो स्थिति बनी उससे बचा जा सकता था।

यह अच्छा नहीं हुआ कि पुलिस न तो तब हरकत में आई जब जेएनयू में रजिस्ट्रेशन कराने गए छात्रों को पीटने के साथ वहां इंटरनेट बाधित किया जा रहा था और न ही तब जब वहां नकाबधारी तत्व घुसकर उत्पात मचा रहे थे। दिल्ली पुलिस को अपनी जांच में तत्परता का परिचय देना चाहिए। इसी के साथ यह भी आवश्यक है कि विभिन्न राजनीतिक दल पुलिस की अधूरी जांच के आधार पर अपनी राजनीति चमकाने से बाज आएं।

यह ठीक है कि जेएनयू एक नामचीन विश्वविद्यालय है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि परस्पर विरोधी दल उसे अपनी राजनीति का अखाड़ा बना लें। जेएनयू के अशांत और उपद्रव ग्रस्त रहने की एक बड़ी वजह राजनीतिक दलों की दखलंदाजी है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि मानव संसाधन विकास मंत्री यह कह रहे हैैं कि विश्वविद्यालयों को राजनीति का अड्डा नहीं बनने दिया जाएगा, क्योंकि वे तो राजनीति के अड्डे बन चुके हैैं। यदि विश्वविद्यालय राजनीति के अड्डे बने रहे तो फिर वहां वैसा कुछ होता ही रहेगा जैसा जेएनयू में हुआ। विश्वविद्यालय ज्ञान के केंद्र हैैं न कि राजनीति की नई खेप तैयार करने के कारखाने। समझना कठिन है कि छात्र संगठनों को विश्वविद्यालयों में बेलगाम होने की इजाजत क्यों मिली हुई है?

जेएनयू सरीखे विश्वविद्यालयों में कई छात्र पढ़ने के नाम पर न केवल नेतागीरी करते हैैं, बल्कि शिक्षा से इतर मसलों पर हंगामा भी करते हैैं? इससे भी खराब बात यह है कि वे विश्वविद्यालय को अपनी निजी जागीर समझने लगते हैैं। इसी मुगालते के कारण जेएनयू में छात्रों के एक गुट ने प्रवेश प्रक्रिया और परीक्षाएं बाधित करने की हिमाकत की। यह खुली गुंडागर्दी के अलावा और कुछ नहीं। ऐसी गुंडागर्दी को केवल पुलिस के भरोसे नहीं रोका जा सकता।