राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में राजग प्रत्याशी के रूप में जनता दल-यू के सांसद हरिवंश की जीत इसलिए कहीं अधिक उल्लेखनीय है, क्योंकि एक तो उच्च सदन में बहुमत न होने के बाद भी सत्तापक्ष को विजय हासिल हुई और दूसरे करीब चार दशक बाद यह पद किसी गैर-कांग्रेसी दल के खाते में गया। राजग का नेतृत्व कर रही भाजपा को यह जीत एक ऐसे समय मिली जब विपक्षी दल महागठबंधन बनाने की तैयारी कर रहे हैैं।

सत्तापक्ष के हरिवंश ने विपक्ष के बीके हरिप्रसाद को मात देकर यही रेखांकित किया कि कम से कम कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन का आकार लेना उतना सहज-सरल नहीं जितना आभास कराया जा रहा है। विपक्षी खेमें में सब कुछ ठीक नहीं, यह तभी प्रकट हो गया था जब महागठबंधन की पैरवी करने वाले दलों ने यह जिम्मेदारी कांग्रेस पर ही डाल दी थी कि वह राज्यसभा उपसभापति के लिए अपने ही सदस्य को प्रत्याशी बनाए। इससे यही संकेत मिला कि वे या तो जीत को लेकर सुनिश्चित नहीं थे या फिर कांग्रेस से निकटता बढ़ाते हुए नहीं दिखना चाह रहे थे।

ध्यान रहे विपक्षी दलों में कई दल ऐसे हैैं जो कांग्रेस विरोधी राजनीति की उपज हैैं। चुनाव नतीजे से यह भी साफ हो गया कि कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी के पक्ष में वैसी लामबंदी नहीं की जैसी जरूरी थी। उसकी रणनीति जो भी रही हो, उसे अपने रवैये को लेकर सवालों का सामना इसीलिए करना पड़ रहा है कि वह इस प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव के प्रति गंभीर नहीं दिखी। दरअसल इसी कारण हरिप्रसाद के मुकाबले हरिवंश को कहीं ज्यादा वोट मिले।

समझना कठिन है कि कांग्रेस ने कुछ विपक्षी और तटस्थ से दिख रहे दलों से संवाद-संपर्क क्यों नही किया? विपक्ष के विपरीत सत्तापक्ष का काम इसलिए आसान हो गया, क्योंकि अन्नाद्रमुक और टीआरएस जैसे दलों के साथ बीजद भी उसके पाले में आ गया। इसी के साथ अभी कल तक और यहां तक कि अविश्वास प्रस्ताव के समय भाजपा से दूरी और नाराजगी जाहिर करने वाली शिवसेना ने हरिप्रसाद की हार सुनिश्चित की। अभी यह कहना कठिन है कि वह राजग का हिस्सा बनी रहेगी या नहीं, लेकिन यह संकेत तो मिला ही कि वह भाजपा के साथ अपने संबंधों को लेकर फिर से विचार कर रही है।

यह अच्छा हुआ कि पत्रकार से सांसद बने हरिवंश के राज्यसभा उपसभापति निवार्चित होते ही विपक्ष ने भी उन्हें बधाई दी। लोकतंत्र का तकाजा यही कहता है। हरिवंश का राज्यसभा का उपसभापति बनना यह भी बताता है कि भाजपा और जद-यू का साथ और प्रगाढ़ हुआ है। भाजपा के घटक दल के किसी नेता को प्रतिष्ठित पद मिलने से गठबंधन धर्म को मजबूती मिलती हुई दिखी है। यह मजबूती भाजपा के नए सहयोगियों की तलाश सहायक बन सकती है।

नि:संदेह लोकसभा चुनाव तक सत्तापक्ष और विपक्ष के समीकरणों में अभी और बदलाव होते रह सकते हैैं, लेकिन अच्छा यह होगा कि राज्यसभा वरिष्ठों के सदन के रूप में ही नजर आए। उम्मीद है कि हरिवंश का पत्रकारिता का लंबा अनुभव राज्यसभा के काम-काज को और सुगम बनाने के साथ ही संवाद और सहयोग भाव को बल प्रदान करेगा।