विभिन्न दलों के संसदीय दल के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की बैठक से यही स्पष्ट हुआ कि फिलहाल लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। हालांकि इस संदर्भ में कोई निर्णय प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ होने वाली बैठक के बाद ही होगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कई मुख्यमंत्री लॉकडाउन बढ़ाने का आग्रह कर चुके हैं और कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की जो स्थिति है वह भी इसकी अनुमति नहीं देती कि 14 अप्रैल को देश को लॉकडाउन से मुक्त कर दिया जाए।

अब जब लॉकडाउन की अवधि बढ़ना तय-सा माना जा रहा है तब फिर इस पर विचार आवश्यक हो गया है कि क्या देश के उन हिस्सों में कोई सशर्त ढील दी जाए जो कोरोना के संक्रमण से बचे हुए हैं और जहां यह अंदेशा नहीं है कि संक्रमण फैल सकता है? इस प्रश्न पर विचार इसलिए होना चाहिए, क्योंकि देश को लॉकडाउन की भारी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है। आवश्यक सेवाओं को छोड़कर करीब-करीब सारी कारोबारी गतिविधियां ठप हैं। इसके चलते केवल कारोबार जगत को ही नुकसान नहीं उठाना पड़ रहा, बल्कि कामगारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट गहरा रहा है।

बेहतर होगा कि कोरोना प्रभावित इलाकों में तो लॉकडाउन को और सख्ती से लागू किया जाए, लेकिन कोरोना के संक्रमण से बचे क्षेत्रों में आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को सीमित स्तर पर ही सही, गति देने के उपाय किए जाएं। ऐसा करते समय वैसी ही सावधानी बरतना सुनिश्चित किया जाना चाहिए जैसी आवश्यक सेवाओं से जुड़ी आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों के संचालन में बरती जा रही है। चूंकि फसल कटाई का काम शुरू होने जा रहा है और उसे रोका नहीं जा सकता इसलिए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को इस पर भी ध्यान देना होगा कि ग्रामीण इलाकों में कृषि कार्य तो संपन्न हों, लेकिन संक्रमण फैलने का खतरा न पनपने पाए।

नि:संदेह ऐसे उपाय करने के साथ ही उन कारणों का निवारण भी प्राथमिकता के आधार पर करना होगा जिनके चलते कोरोना वायरस की चपेट में आने वालों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है। यह शुभ संकेत नहीं कि बीते 24 घंटों में सात सौ से अधिक कोरोना मरीज मिले। इससे इन्कार नहीं कि हर दिन ज्यादा से ज्यादा लोगों के परीक्षण का काम तेज करने की जरूरत है, लेकिन इसके साथ ही समाज की ओर से ऐसा माहौल बनाना भी समय की मांग है कि कोरोना के संदिग्ध रोगी अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराने के लिए स्वेच्छा से आगे आएं। कोरोना वायरस की चपेट में आना गुनाह नहीं, लेकिन उसके संक्रमण को छिपाना आपराधिक लापरवाही के अलावा और कुछ नहीं।