यह शर्मनाक है कि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने एक बार फिर बेतुकी बात करके न केवल अपनी क्षुद्र मानसिकता का परिचय दिया, बल्कि देश को बदनाम करने का भी काम किया। पहले भी कई बार अपने पद की गरिमा के प्रतिकूल वक्तव्य दे चुके हामिद अंसारी ने इस बार अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में यह कह दिया कि भारत में धार्मिक बहुमत वाली आबादी को राजनीति में एकाधिकार दे दिया गया है। उन्होंने यह भी कह डाला कि देश में मजहब के आधार पर असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा रहा है। गंभीर बात यह है कि उन्होंने यह सब प्रलाप गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर किया और वह भी एक ऐसे मंच से जिसके आयोजकों में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल नामक वह संस्था भी शामिल है, जिस पर भारत में दंगे कराने के साथ-साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर काम करने के आरोप हैं।

हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति के साथ कई देशों में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं। यह कल्पना करना कठिन नहीं कि उन्होंने अपनी इसी संकीर्ण सोच के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन किया होगा। वह अपनी संकीर्णता का लगातार प्रदर्शन भी करते रहे हैं। भारत विभाजन के सबसे बड़े खलनायक जिन्ना की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में तस्वीर का उन्होंने यह कहकर बचाव किया था कि यदि कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल हो सकता है तो फिर एएमयू में जिन्ना की तस्वीर क्यों नहीं लग सकती? इसी तरह वह कोविड महामारी से भी खतरनाक बीमारी के रूप में धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद का उल्लेख कर चुके हैं।

यह भी याद रहे कि हामिद अंसारी ऐसा भी विषवमन कर चुके हैं कि देश का मुस्लिम समुदाय स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा है। क्या यह महज दुर्योग है कि उनके कई बयान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मिलते-जुलते हैं? यह भी भूला नहीं जा सकता कि वह देश विभाजन के लिए जिम्मेदार तत्वों और खासकर पाकिस्तान की मांग करने वालों को क्लीनचिट दे चुके हैं। वह कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उनका दूषित चिंतन यही बताता है कि राष्ट्र सेवा के नाम पर उनके जैसे लोग किस तरह उसे लांछित करने और समाज में जहर घोलने का काम करते हैं। पापुलर फ्रंट आफ इंडिया नामक चरमपंथी संगठन पर दिल्ली समेत देश के दूसरे हिस्सों में दंगे कराने के आरोप लगते रहे हैं और समय-समय पर उस पर पाबंदी की मांग भी उठती रही है।