यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पद्म सम्मान एक बार विवाद का विषय बना दिए गए। पद्म सम्मान की घोषणा होते ही पहले पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री एवं माकपा नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उसे लेने से इन्कार कर दिया। ऐसा करके उन्होंने मोदी सरकार के प्रति केवल अपनी अरुचि ही नहीं प्रदर्शित की, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान के प्रति भी अपनी विरक्ति का परिचय दिया। उन्होंने ऐसा तब किया, जब पद्म सम्मान की सार्वजनिक घोषणा के पहले उनकी पत्नी को इस बारे में सूचित कर दिया गया था।

हैरानी नहीं कि उन्होंने पद्म सम्मान ठुकराने का फैसला पार्टी नेताओं के दबाव में लिया हो। सच जो भी हो, उनका फैसला यही इंगित करता है कि राजनीतिक मतभेदों ने किस प्रकार विद्वेष का रूप धारण कर लिया है और किस तरह राष्ट्रीय प्रतीक भी उसकी चपेट में आ रहे हैं। अच्छा हो कि उन्हें और उनके साथियों को यह आभास हो कि वे पद्म सम्मान ठुकराकर न केवल घोर राजनीतिक असहिष्णुता का परिचय दे रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान का अपमान भी कर रहे हैं।

यह दुखद है कि पद्म सम्मान के मामले में बुद्धदेव भट्टाचार्य की ओर से क्षुद्र मानसिकता का परिचय तब दिया गया, जब हाल के वर्षो में उन्हें प्रदान करने की प्रक्रिया में व्यापक सुधार करने के साथ ऐसे प्रयास भी किए गए हैं, जिससे उनकी गरिमा बढ़ी है। जैसे बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म सम्मान रास नहीं आया, वैसे ही कुछ कांग्रेसी नेताओं को भी यह नहीं भाया कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को यह सम्मान प्रदान किया गया। यद्यपि स्वयं गुलाम नबी आजाद ने केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया, लेकिन कुछ कांग्रेसी नेताओं ने राजनीतिक क्षुद्रता का परिचय देते हुए उन पर कटाक्ष करना बेहतर समझा। ऐसा करके उन्होंने राजनीतिक विरोध की मर्यादा का उल्लंघन तो किया ही, अपनी क्षुद्र मानसिकता को भी प्रकट किया।

यह देखना दयनीय है कि कांग्रेस अब इस काम में माहिर होती जा रही है। यह पहली बार नहीं, जब मोदी सरकार ने विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं को पद्म सम्मान प्रदान किया हो। अभी पिछले वर्ष उसने असम के कांग्रेसी नेता और वहां के तीन बार मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई को भी मरणोपरांत पद्म सम्मान प्रदान किया था। तब कांग्रेसी नेताओं की ओर से वैसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई थी, जैसी इस बार गुलाम नबी आजाद के मामले में आई।