लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति कायम रखने को लेकर चीन के साथ विदेश मंत्रालय के स्तर पर होने वाली बातचीत से कोई ठोस समाधान निकलने के प्रति सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि चीनी सत्ता अपनी बात से मुकरने, फर्जी दावे करने और वक्त जाया करने वाली वार्ता करने में माहिर हो चुकी है। हालांकि अपनी हरकतों के कारण चीन पूरी दुनिया में बदनाम हो गया है, लेकिन वह सुधरने को तैयार नहीं दिख रहा।

शायद उसे यह आभास ही नहीं कि पहले कोरोना वायरस के प्रसार में अपनी संदिग्ध भूमिका और फिर अपने विस्तारवादी रवैये का परिचय देने के कारण उसे दुनिया में कितनी खराब नजरों से देखा जा रहा है? किसी देश की प्रतिष्ठा केवल उसकी आर्थिक-सैनिक ताकत से ही नहीं, विश्व जनमत की सद्भावना से भी बढ़ती है। चीन यह सद्भावना पूरी तरह खो चुका है।

भारत में तो उसने अपने प्रति नफरत बढ़ाने का काम किया है। अहंकारी चीनी नेतृत्व ने भारत के साथ अपने व्यापारिक और साथ ही सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंधों की जैसी घोर अनदेखी की उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। यह संभव ही नहीं कि उसे इसके दुष्परिणाम न भोगने पड़ें। भारत अब उस पर भरोसा नहीं कर सकता। उसे करना भी नहीं चाहिए।

चीन भारत से मिलकर अपनी आर्थिक मजबूती को कायम रखने के साथ ही वैश्विक मामलों में निर्णायक भूमिका निभा सकता था, लेकिन उसने दादागीरी दिखाने का फैसला किया। यदि चीन यह समझ रहा था कि वह अपनी मनमानी के बावजूद भारत को दबाव में लेने में सफल हो जाएगा तो इसका मतलब है कि उसने जमीनी हकीकत को समझने में भारी भूल की।

आननफानन एकमात्र महाशक्ति बनने के दंभ में उसने न केवल भारत को धोखा दिया, बल्कि अपने खतरनाक चेहरे को अपने ही हाथों बेनकाब भी किया। अब इस खतरनाक चेहरे को पूरी दुनिया देख रही है। विनाशकाले विपरीत बुद्धि का उदाहरण पेश कर रहा चीन चाहे जिस मुगालते में हो, आज का यथार्थ यही है कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा के साथ यूरोपीय देश भी उसे संदेह की निगाह से देख रहे हैं और उस पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए प्रयत्नशील हैं।

इसी के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी चीन से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में हैं। ऐसे माहौल में भारत के लिए यही उचित है कि वह चीन की दिखावटी बातों पर भरोसा करने के बजाय उसके खिलाफ आर्थिक और कूटनीतिक कदम उठाए। चीन से होने वाली सरकारी खरीद पर लगाम लगाने का फैसला समय की मांग के अनुरूप है। वास्तव में अभी यही सुनिश्चित करने की जरूरत है कि चीन के खिलाफ उठाए जाने वाले ऐसे कदमों का सिलसिला कायम रहे।