बहस के बजाय हंगामा

यह अजीब है कि सरकार की ओर से किसानों से संबंधित मसलों पर चर्चा के लिए सहमति व्यक्त किए जाने के बाद भी लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा हुआ। इस हंगामे के चलते दोनों सदनों की कार्यवाही जिस तरह रह-रह कर स्थगित हुई, उससे यही साबित होता है कि विपक्ष का मकसद केवल हंगामा करना ही था। समझना कठिन है कि जब विपक्ष के पास कृषि कानूनों और साथ ही किसानों के आंदोलन के मसले पर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर होने वाली चर्चा के दौरान अपनी बात कहने का अवसर है तो फिर वह उसकी तैयारी करने के बजाय हंगामा क्यों कर रहा है? ध्यान रहे कि विपक्ष के इसी रवैये के कारण कृषि विधेयकों के पारित होते समय संसद और खासकर राज्यसभा में अपेक्षित चर्चा नहीं हो सकी थी। तब विपक्ष इसलिए चिढ़ गया था कि सरकार ने उच्च सदन में इन विधेयकों के पक्ष में बहुमत कैसे जुटा लिया? अब वह किसानों के आंदोलन को भुनाने में जुट गया है। बीते कुछ दिनों से एक के बाद एक विपक्षी नेता दिल्ली को घेर कर बैठे किसान नेताओं के पास दौड़ लगाने में लगे हुए हैं। वास्तव में किसान आंदोलन अब विपक्षी दलों के सरकार विरोधी औजार में तब्दील हो गया है।

यह हास्यास्पद है कि सरकार को नीचा दिखाने के फेर में कृषि कानूनों के विरोध में वे दल भी खड़े हैं, जो ऐसे ही कानून बनाने की जरूरत जताने के साथ अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसका उल्लेख भी कर रहे थे। कांग्रेस ने यही किया था। शिवसेना ने तो इन कृषि विधेयकों का लोकसभा में समर्थन भी किया था। इतना ही नहीं, उसके नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने सबसे पहले नए कृषि कानूनों पर अमल करने के आदेश जारी किए थे। जब उसने देखा कि कुछ किसान संगठन सड़कों पर उतर आए हैं तो अपना इरादा बदल दिया। यही काम अकाली दल ने भी किया। दरअसल यह तो वह दल है, जो कृषि कानूनों को बेहतर बताने में लगा हुआ था। साफ है कि विपक्षी दल संकीर्ण राजनीतिक कारणों से किसानों को बरगलाने में जुटे हुए हैं। किसानों के मुद्दे पर संसद में हंगामा करने को बेकरार विपक्षी दलों को बताना चाहिए कि वे चाहते क्या हैं? क्या यह कि किसान अपनी उपज की बिक्री के मामले में उन्हीं पुराने नियम-कानूनों में बंधे रहें, जिनसे उनके बजाय आढ़तियों और बिचौलियों के हित सधते हैं और जो तब बनाए गए थे, जब देश में अनाज की कमी थी? विपक्षी दल किसानों के हितैषी बनने के नाम पर उन्हेंं गुमराह कर जिस तरह उनके हितों से खेलने में लगे हुए हैं, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है।