कोरोना वायरस मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ किस तरह अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है, इसका ही प्रमाण है दुनिया भर के शेयर बाजारों में गिरावट आना। गत दिवस यह गिरावट कुछ ज्यादा ही रही। इसे इस कारण अप्रत्याशित कहा जाएगा, क्योंकि कोरोना वायरस का कहर तो एक अर्से से जारी है। ऐसा लगता है कि कोरोना वायरस को लेकर जापान, ईरान, इटली आदि से आईं चिंतित करने वाली खबरों ने शेयर बाजारों पर नकारात्मक असर डाला। यह भी दिख रहा है कि एक-दूसरे की देखा-देखी दुनिया भर के शेयर बाजार गोता लगाने लगे। पता नहीं शेयर बाजारों में गिरावट का सिलसिला कैसे और कब थमेगा, लेकिन इतना तो है ही कि इस वायरस से मिलकर निपटने की जरूरत बढ़ती जा रही है। चूंकि कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता चला जा रहा है और चीन के साथ-साथ अन्य देशों में भी संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा बढ़ने लगा है इसलिए इसके उपाय करने ही होंगे कि यह वायरस सेहत के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए और अधिक खतरा न बनने पाए। इसकेलिए दुनिया को एकजुट होने की जरूरत है। कोरोना वायरस ने एक ऐसे समय सिर उठाया है जब विश्व अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्ती का शिकार है।

कोरोना वायरस के अंदेशे से अमेरिका से लेकर भारत तक के शेयर बाजारों के लड़खड़ाने के बीच यह खबर तनिक राहत देने वाली है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 4.7 प्रतिशत रही। दूसरी तिमाही में यह दर 4.5 प्रतिशत रही थी, जो बीते छह वर्षों में सबसे कम थी। हालांकि जीडीपी विकास दर में मामूली सुधार ही हुआ है, लेकिन यह इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि कई एजेंसियों ने तीसरी तिमाही में विकास दर और कम होने का अनुमान लगाया था। यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसका मतलब है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जो तमाम उपाय किए वे कारगर साबित हो रहे हैं। बावजूद इसके उसे सतर्क रहना होगा, क्योंकि एक तो विकास दर में वृद्धि मामूली ही रही और दूसरे, कोरोना वायरस का अंदेशा दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर डाल रहा है।

तमाम भारतीय उद्योग कच्चे माल और उपकरणों के लिए चीन पर निर्भर हैं। इस निर्भरता को कम करने के बारे में विचार करने के साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या इस संकट में कोई अवसर भी छिपा है? जो अंतरराष्ट्रीय निवेशक चीन से मुंह मोड़ रहे हैं उन्हें भारत आने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसी तरह भारतीय कंपनियों को दुनिया के उन बाजारों में पैठ बढ़ानी चाहिए जहां चीनी उत्पाद छाए रहते हैं।