संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद संबंधी रपट में यह दर्ज किया जाना गंभीर चिंता का विषय है कि केरल और कर्नाटक में खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट यानी आइएस का मजबूत नेटवर्क है। इस पर हैरानी इसलिए नहीं, क्योंकि इन दोनों राज्यों में आइएस के कई सदस्य और समर्थक गिरफ्तार किए जा चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रपट को केंद्र सरकार के साथ केरल और कर्नाटक को गंभीरता से लेना चाहिए। इसी के साथ विभिन्न राजनीतिक-गैर राजनीतिक संगठनों को भी चेतना चाहिए। इस मामले में धार्मिक नेताओं की भूमिका अहम है, लेकिन समस्या यह है कि अपने देश में तमाम ऐसे लोग हैं जो या तो इस तरह की रपटों को खारिज करते हैं या फिर आइएस, अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ने वालों को भटके हुए लोग बताते हैं।

कुछ तो ऐसे हैं कि आइएस के लिए काम करने वालों की गिरफ्तारी की खबर मिलते ही उन्हें निर्दोष बताने का अभियान छेड़ देते हैं। इससे भी खराब बात यह है कि इस काम में अगुआ बनते हैं तमाम पढ़े-लिखे लोग और साथ ही राजनीतिक एवं धार्मिक नेता। आश्चर्य नहीं कि संयुक्त राष्ट्र की इस रपट को मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश बताया जाना लगे। आखिर यह काम पहले होता ही रहा है। ऐसे तत्वों को बेनकाब और हतोत्साहित करने की सख्त जरूरत है। इसमें देरी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की रपट यह भी कह रही है कि अफगानिस्तान में अलकायदा की एक टोली में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के सदस्य सक्रिय हैं और वे इस क्षेत्र में आतंकी हमलों की साजिश रच रहे हैं।

इससे अधिक चिंताजनक और कुछ नहीं कि भारत आइएस के निशाने पर भी है और अलकायदा के भी। संयुक्त राष्ट्र की रपट से यह भी स्पष्ट होता है कि आइएस और अलकायदा के कमजोर पड़ने के दावे सही नहीं हैं। भले ही आइएस सीरिया और इराक में कमजोर पड़ गया हो, लेकिन उसने दुनिया के अन्य इलाकों में जड़ें जमा ली हैं। इनमें अफगानिस्तान प्रमुख है, जहां सक्रिय तालिबान किस्म-किस्म के जिहादी संगठनों को संरक्षण देने में लगा हुआ है। दुनिया को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जहां तालिबान को संरक्षण देने का काम कर रहा है पाकिस्तान वहीं उसका आका बना हुआ है चीन।

आइएस और अलकायदा की सक्रियता यह बताने के लिए भी पर्याप्त है कि उनकी प्रचार सामग्री इंटरनेट के जरिये लोगों के दिमाग में जहर घोल रही है। भारत को न केवल इस जहरीली सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे, बल्कि विश्व समुदाय को इसके लिए चेताना भी होगा कि इंटरनेट किस तरह आतंकवाद को खाद-पानी दे रहा है।