दुनिया के प्रमुख देशों के सम्मेलन जी-20 में भारत ने किस तरह अपने बढ़ते प्रभाव का परिचय दिया, इसका पता इसी से चल रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ओर जहां अमेरिका और जापान के शासनाध्यक्षों संग बैठक की वहीं दूसरी ओर वह चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के साथ भी बैठे। दुनिया की बड़ी ताकतों में गिने जाने वाले सभी चुनिंदा देशों के साथ बढ़ती समझबूझ भारतीय विदेश नीति की सक्रियता और सफलता ही नहीं बयान करती, बल्कि भारत के बढ़ते कद को भी रेखांकित करती है। आखिर इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों के जरिये भारत अपनी अहमियत साबित करने के साथ दुनिया को दिशा देता हुआ दिखे?

यह अच्छा हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र के साथ विश्व व्यापार संगठन में भी सुधार पर जोर दिया। यह इसलिए आवश्यक था, क्योंकि इधर मुक्त व्यापार के मामले भी मनमानी होती दिख रही है। नि:संदेह यह भी आवश्यक था कि विश्व के बड़े देश इस ओर ध्यान दें कि भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर नकेल कसने की कोई प्रभावी व्यवस्था बने। इस जरूरत को रेखांकित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने न केवल जी-20 देशों के बीच सहयोग को जरूरी बताया, बल्कि इस संदर्भ में एक नौ सूत्रीय एजेंडा भी पेश किया। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस एजेंडे पर बड़े देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र और साथ ही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स भी गौर करेगी-ठीक वैसे ही जैसे काले धन के कारोबार को नियंत्रित करने के भारत के सुझावों पर ध्यान दिया गया। जी-20 देश इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि आर्थिक अपराध कर विदेश भागने वाले तत्वों से भारत के साथ अन्य अनेक देश भी परेशान हैं।

दुर्भाग्य यह है कि ऐसे तत्वों के पसंदीदा ठिकाने जी-20 के कई देश भी हैं। यह एक विडंबना ही है कि आतंकवाद की तरह आर्थिक अपराध की भी मानक परिभाषा तय किया जाना शेष है। इसके कारण ही कई आतंकी और आर्थिक अपराधी दंड पाने से बचे रहते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ब्यूनस आयर्स का दौरा केवल इसलिए ही उल्लेखनीय नहीं कि उन्होंने जी-20 के मंच से भारतीय कूटनीति को एक नई धार दी, बल्कि इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा कि वह विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करते दिखे। चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद जितना महत्वपूर्ण संबधों में सुधार को रेखांकित किया जाना रहा उससे भी उत्साहजनक यह रहा कि चीन भारत से आयात बढ़ाने पर सहमत हुआ। यह सहमति इसलिए जरूरी थी, क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापार में संतुलन का अभाव भारत के लिए एक अर्से से चिंता का विषय बना हुआ है। अब जबकि चीन भारत की इस चिंता को दूर करने के लिए तैयार दिख रहा तो इसकी भी आशा की जा सकती है कि वह नई दिल्ली की अन्य चिंताओं के प्रति भी संवेदनशीलता का परिचय देगा। ऐसा करना खुद उसके अपने हित में है।

चीन को यह समझना ही होगा कि रिश्तों में सुधार से जितना भला भारत को होगा उतना ही उसे भी। अर्जेंटीना में चीन के अलावा सऊदी अरब की ओर से यह कहा जाना भी उल्लेखनीय है कि वह भारत की कच्चे तेल की जरूरत पूरी करने के लिए वचनबद्ध है।