अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान व्यापार पर किसी समझौते की संभावना न होने के बावजूद इस यात्रा को लेकर उत्सुकता है तो इसीलिए कि रक्षा, सुरक्षा, ऊर्जा, तकनीक, आतंकवाद से लड़ाई, दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क समेत अन्य अनेक मसलों पर सकारात्मक चर्चा होने की उम्मीद है।

अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा इन उम्मीदों पर इसलिए खरी उतरनी चाहिए, क्योंकि अगर अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है तो भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र। चूंकि दोनों देश एक-दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी हैं इसलिए यह तय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के बीच द्विपक्षीय मसलों के साथ-साथ उन अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा होगी जिनमें दोनों के साझा हित निहित हैं।

पश्चिम एशिया के हालात और चीन-पाकिस्तान के रवैये को लेकर दोनों देशों को आपसी समझबूझ बढ़ाने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति बहुत कुछ अमेरिकी राष्ट्रपति के रवैये पर निर्भर करेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ समस्या यह है कि वह कई बार अपने राष्ट्रीय हितों के आगे मित्र देशों और कभी-कभी तो वैश्विक हितों की भी अनदेखी कर देते हैं। भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति के इस रवैये को लेकर सतर्क रहना होगा।

यह ठीक है कि डोनाल्ड ट्रंप अलग स्वभाव वाले राष्ट्रपति हैं, लेकिन यह बुनियादी बात तो उन्हें पता होनी ही चाहिए कि दो देशों के बीच समझौते तभी होते हैं जब वे उभय पक्षों के लिए उपयोगी होते हैं। व्यापार मामले में नई दिल्ली जिस तरह वाशिंगटन की अनुचित शर्ते मानने के लिए सहमत नहीं हुआ उससे अमेरिकी राष्ट्रपति को इसका भी आभास हो जाना चाहिए कि आज के भारत के साथ ऐसे समझौते नहीं किए जा सकते जो दोनों देशों के लिए हितकारी न हों।

नि:संदेह अमेरिका एक महाशक्ति है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि आज दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। एक तथ्य यह भी है कि अमेरिका की उन्नति में भारतीयों की एक बड़ा भूमिका है। यदि अमेरिकी राष्ट्रपति अहमदाबाद जा रहे हैं तो भारतीय मूल के लोगों को आकर्षित करने के इरादे से भी।

जब यह स्पष्ट है कि दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत है तब फिर कोशिश यही होनी चाहिए कि आपसी विश्वास को बढ़ाने की दिशा में हर संभव कदम उठाए जाएं। दोनों देशों को अपने साझा हितों की पूर्ति के साथ साझा समस्याओं के समाधान पर भी ध्यान देना चाहिए। बेहतर होगा कि अन्य अनेक मसलों के साथ दोनों देश फर्जी और वैमनस्य फैलाने वाली खबरों पर अंकुश लगाने के उपायों पर भी चर्चा करें। यह चर्चा इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि सोशल मीडिया के जिन प्लेटफार्म से यह काम हो रहा है उनके मुख्यालय अमेरिका में ही हैं।