एक ऐसे समय जब दुनिया भर में विमानन उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है तब भारत में यह संकट और गंभीर होना कोई शुभ संकेत नहीं। दुनिया भर की एयरलाइंस इसलिए मुसीबत से दो-चार हैैं, क्योंकि बोइंग कंपनी के 737 मैक्स विमानों की सुरक्षा को लेकर अंदेशा पैदा हो गया है। छह माह के भीतर बोइंग के दो 737 मैक्स विमान दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद करीब-करीब सभी एयरलाइंस ने इन विमानों से तौबा कर ली है। विमानों की इस कमी का असर एयरलाइंस के साथ विमान यात्रियों पर भी पड़ रहा है।

मुश्किल यह है कि अभी यह कहना कठिन है कि बोइंग अपने 737 मैक्स विमानों की खराबी कब तक दूर कर पाएगी। बोइंग के 737 मैक्स विमानों ने एयरबस कंपनी के ए 320 नियो विमानों की याद दिला दी है जिनकी उड़ान में समस्या आनी शुरू हो गई थी। हालांकि इन विमानों के साथ समस्या इतनी गंभीर नहीं थी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक साल के भीतर विमानन उद्योग यात्री विमान बनाने वाली दोनों नामी कंपनियों एयरबस और बोइंग की लापरवाही का शिकार हुआ। कहीं ऐसा तो नहीं कि जैसे एयरबस ने अपने ए 320 नियो विमान पर्याप्त परीक्षण के बगैर ही बाजार में उतार दिए थे वैसे ही बोइंग ने 737 मैक्स विमानों के साथ किया? कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि भविष्य में ऐसी नौबत न आने पाए।

भारत में सक्रिय एयरलाइंस को कहीं अधिक सतर्क रहना होगा, क्योंकि यहां विमान यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। उड़ान योजना ने सचमुच आम आदमी को हवाई यात्रा सुलभ करा दी है। यह एक तरह से दोहरा संकट है कि जब भारत में विमान यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है तब एक ओर जहां एयरलाइंस को बोइंग के 737 मैक्स विमानों से वंचित होना पड़ा वहीं दूसरी ओर एक निजी एयरलाइंस गंभीर आर्थिक संकट से घिर गई। पता नहीं किंगफिशर एयरलाइंस के मुकाबले जेट एयरवेज का संकट कितना गंभीर है, लेकिन यह सामान्य बात नहीं कि उसके आधे से कम विमान ही उड़ान भर पा रहे हैैं। हालांकि सरकार ने स्थिति का संज्ञान लिया है, लेकिन लगता नहीं कि उसके हस्तक्षेप से बात बन पाएगी। नि:संदेह किसी निजी एयरलाइंस के कामकाज में सरकार के दखल देने की एक सीमा है, लेकिन जब किसी निजी विमानन कंपनी का संकट विमान यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन जाए तब वह हाथ पर हाथ धरे रहकर भी नहीं बैठ सकती।

बेहतर हो कि सरकार यह जरूरी सबक सीखे कि निजी एयरलाइंस अपना काम इस तरह से करें जिससे उनकी गलतियों के दुष्परिणाम उनके कर्मचारियों और खास तौर पर विमान यात्रियों को न भोगने पड़ें। सच तो यह है कि आम आदमी को किसी भी रूप में व्यापक तौर पर प्रभावित कर सकने वाली हर क्षेत्र की कंपनियों की निगरानी और उनके नियमन की व्यवस्था को और दुरुस्त करने की जरूरत है। यदि ऐसी कंपनियों का बिजनेस मॉडल और उनकी वित्तीय सेहत तय मानकों के अनुरूप नहीं होगी तो उनका संकट जनता और साथ ही सरकार के लिए भी संकट बनेगा।