पाकिस्तान में गुरुद्वारा ननकाना साहिब पर हमले की घटना को लेकर पाकिस्तान ने वैसी ही लीपापोती की जैसी उसकी आदत है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की मानें तो इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में कहीं कुछ नहीं हुआ। वह इस झूठ के पीछे इसलिए नहीं छिप सकता, क्योंकि इस गुरुद्वारे के सामने जमा हिंसक भीड़ के व्यवहार और उसकी भड़काऊ नारेबाजी को सारी दुनिया ने देखा-सुना है। यदि ननकाना साहिब में कहीं कुछ नहीं हुआ तो फिर वहां घोर आपत्तिजनक नारे क्यों लगे और पत्थरबाजी कौन कर गया? सवाल यह भी है कि इस घटना के अगले दिन वहां के सिखों को नगर कीर्तन निकालने की अनुमति क्यों नहीं दी गई?

पाकिस्तान अपने यहां के उपेक्षित, अपमानित और आतंकित अल्पसंख्यकों की हिफाजत के खोखले दावे कर देश-दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की चाहे जितनी कोशिश करे, हकीकत यही है कि वहां रह रहे हिंदू, सिख, ईसाई आदि एक तरह से अपने अंतिम दिन गिन रहे हैं। उनका कोई भविष्य नहीं। वे या तो जबरन धर्मातरण का शिकार होंगे या फिर अपमानित जीवन जीने को विवश होंगे। उन्हें त्रासदी भरे जीवन से तभी छुटकारा मिल सकता है जब वे या तो अपना धर्म छोड़ दें या फिर देश। वास्तव में इसी कारण पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है।

पाकिस्तान के हालात सुधरने की कहीं कोई उम्मीद इसलिए नहीं, क्योंकि एक तो कट्टरपंथी तत्व सेना एवं सरकार से संरक्षित हैं और दूसरे, ईशनिंदा सरीखा दमनकारी कानून अस्तित्व में है। जब तक यह कानून अस्तित्व में रहेगा, पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की जान सांसत में ही बनी रहेगी। ननकाना साहिब की घटना के बाद भारत में उन लोगों की आंखें खुल जाएं तो बेहतर जो अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून का अंध विरोध करने में लगे हुए हैं। आखिर पाकिस्तान में सताए जा रहे हिंदू, सिख आदि भारत की ओर नहीं निहारेंगे तो क्या अमेरिका, कनाडा से उम्मीद लगाएंगे? कम से कम अब तो नागरिकता कानून के विरोधियों को उसके खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने से बाज आना चाहिए, क्योंकि इस कानून के जरिये पाकिस्तान और साथ ही बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताडि़त किए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।

यदि आपत्ति इस पर है कि इस कानून का लाभ इन तीनों देशों के उन अल्पसंख्यकों को ही मिलने जा रहा है जो दिसंबर 2014 तक भारत आ चुके हैं तो फिर विपक्ष को ऐसी कोई मांग करनी चाहिए कि इस समय सीमा को बढ़ाया जाए। क्या वह ऐसा कर रहा है? क्या यह किसी से छिपा है कि वह इस कानून को सिरे से खारिज किए दे रहा है?