पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के इस कथन को महत्व न देने में ही समझदारी है कि भारतीय प्रधानमंत्री शांति को एक अवसर और दें। यह अपील करते हुए इमरान ने जिस तरह यह कहा कि अगर भारत पुलवामा हमले में कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी उपलब्ध कराता है तो उस पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वह भारत के साथ दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैैं। अगर वह भारत का भरोसा जीतने के तनिक भी इच्छुक हैैं तो सबसे पहले उन्हें जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को गिरफ्तार करना चाहिए। इसके अलावा उन्हें पठानकोट हमले में इसी आतंकी सरगना और उसके भाई के हाथ होने के संबंध में भारत की ओर दिए गए सुबूत भी देखने चाहिए। उन्हें मुंबई हमले की साजिश रचने वाले आतंकियों के खिलाफ भी कुछ करना चाहिए, क्योंकि 11 साल बीत जाने के बावजूद वे पाकिस्तान में न केवल छुट्टा घूम रहे हैैं, बल्कि भारत के खिलाफ आग भी उगल रहे हैैं।

इमरान को इससे भी परिचित होना चाहिए कि भारत में वांछित एक अन्य आतंकी सरगना दाऊद इब्राहिम भी कराची में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के संरक्षण में पल रहा है। आखिर वह किस मुंह से अमन को एक और मौका देने की मोहलत मांग रहे हैैं?

इमरान खान ने पुलवामा हमले के पीछे जैश ए मोहम्मद का हाथ होने के सुबूत जिस तरह भारत से मांगे उससे यही पता चलता है कि उनके नेतृत्व में तथाकथित नया पाकिस्तान भी उसी पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है जिसके तहत पहले भारत से सुबूत मांगे जाते हैैं और फिर उन्हें अपर्याप्त बता दिया जाता है। पाकिस्तान अपनी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी के इशारे पर काम करने वाली अपनी अदालतों की स्वतंत्रता का गुण गाते हुए यह बहाना भी खूब बनाता है कि वे अपना काम कर रही हैैं।

क्या यह मजाक नहीं कि ओसामा बिन लादेन का सुराग देने वाले पाकिस्तानी डॉक्टर को तो वहां की अदालतों ने आनन-फानन सजा सुना दी, लेकिन मुंबई हमले की साजिश रचने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का दिखावा भी नहीं कर पा रही हैैं? आखिर यह भारत को धोखा देने के साथ आतंक को संरक्षण देने की पाकिस्तानी फितरत नहीं तो और क्या है? आतंकी संगठनों पर पाबंदी लगाने का ढोंग करना भी उसकी फितरत है। इमरान खान कहें कुछ भी, उन्होंने अपने रवैये से इसी धारणा को गहराया है कि पाकिस्तान भारत के लिए खतरा बने आतंकी संगठनों को पालने-पोसने से बाज आने वाला नहीं है। नि:संदेह केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि भारत इमरान की अपील को गौर करने लायक नहीं मान रहा है। जरूरी यह भी है कि भारतीय नेतृत्व यह देखे कि पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव कैसे डाला जाए?

पाकिस्तान फिलहाल भारत के रवैये और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया से सहमा अवश्य है, लेकिन वह इसी ताक में दिख रहा कि विश्व समुदाय के दबाव से कैसे मुक्त हुआ जाए। हैरत नहीं कि इसी कोशिश के चलते इमरान ने शांति को एक और मौका देने का शोशा छोड़ा हो। भारत यह ध्यान रखे तो बेहतर कि पाकिस्तान आसानी से बदलने वाला नहीं।