पुलवामा में भीषण आतंकी हमले के कई दिन बाद इस घटना पर कुछ बोलने के लिए आगे आए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे पाकिस्तान पर भरोसा किया जा सके। इमरान ने हमेशा की तरह आतंकी हमले में पाकिस्तान की लिप्तता के सुबूत मांगकर देश-दुनिया को गुमराह करने की ही कोशिश की। इसी के साथ उन्होंने यह कहकर भारत को धमकाया भी कि अगर पाकिस्तान पर हमला हुआ तो उसका जवाब दिया जाएगा। इस सबके साथ ही उन्होंने बातचीत से समस्या का हल निकालने की पेशकश की और यह रोना भी रोया कि पाकिस्तान तो खुद ही आतंकवाद का शिकार है। इस रुदन में किसी की दिलचस्पी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि खुद उसके पाले-पोसे आतंकियों ने ही उस पर कहर ढाया है।

पेशावर के एक स्कूल में हुआ हमला इसका सबसे बड़ा सुबूत था। आखिर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने यह सोच भी कैसे लिया कि भारत उन पर भरोसा करने के लिए तैयार हो सकता है? इमरान पुलवामा हमले में शामिल जिस आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ सुबूत मांग रहे हैैं उसका सरगना तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के साये में ही पल रहा है।

क्या इमरान इससे अवगत नहीं कि वह पठानकोट हमले के बाद से ही आइएसआइ के संरक्षण में रह रहा है? यह वही आतंकी सरगना है जिस पर चीन इसलिए संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी नहीं लगने दे रहा है, क्योंकि पाकिस्तान को शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। इमरान खान पर भरोसा इसलिए भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक तो वह दिखावटी प्रधानमंत्री हैैं और दूसरे, हर कोई इससे अच्छी तरह परिचित हो चुका है कि पाकिस्तान आतंकी हमलों में अपने लोगों के हाथ होने के सुबूत मांगकर किस तरह वक्त जाया करने के साथ ही नए हमलों की साजिश रचता है।

भारत यह कभी नहीं भूल सकता कि मुंबई हमले की साजिश रचने वाले आतंकियों के खिलाफ तमाम सुबूत दिए जाने के बाद भी पाकिस्तान ने कुछ नहीं किया। ये आतंकी न केवल खुले आम घूम रहे हैैं, बल्कि पाकिस्तान के शिक्षा संस्थानों में जाकर भारत के खिलाफ आग उगलने में लगे हुए हैैं।

मुंबई हमले के गुनहगारों और मसूद अजहर के अलावा पाकिस्तान तमाम सुबूतों के बावजूद एक अन्य आतंकी सरगना दाऊद इब्राहीम को भी कराची में पाल रहा है। ऐसे काम वही कर सकता है जिसने आतंकवाद को अपने शासन की नीतियों का हिस्सा बना लिया हो। पाकिस्तान आतंकवाद का निर्यात भारत के साथ-साथ अफगानिस्तान और ईरान में भी करने में लगा हुआ है और इसी कारण दुनिया उसकी बातों का भरोसा नहीं करती। समस्या यह है कि विश्व समुदाय पाकिस्तान को आतंकवाद का गढ़ मानने के बावजूद उसकी अनदेखी करता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भले ही उसे आर्थिक मदद देने को तैयार न हों, लेकिन वह अफगानिस्तान को उन तालिबान के हवाले करने को तैयार हैैं जिन्हें पाकिस्तान का खुला समर्थन प्राप्त है। ऐसी हालत में भारत को ही यह देखना होगा कि वह पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए क्या कदम उठाए? नि:संदेह केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि भारत ने इमरान के बयान को नकार दिया। इसके साथ ही उसे और भी बहुत कुछ करना होगा।