उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा परिषद ने 19,213 मदरसों को मान्यता दे रखी है। परिषद के वेब पोर्टल पर 16,827 मदरसों ने विवरण अपलोड कर पंजीकरण करा दिया है, लेकिन 2,386 मदरसे अभी पोर्टल पर नहीं हैं। पोर्टल का डाटा अब डिजिटली लॉक कर कर दिया गया है। सरकार पंजीकरण न कराने वाले मदरसों की जांच करने जा रही है। माना जा रहा है कि ये मदरसे केवल कागजों पर ही चल रहे हैं। जांच में पता लगेगा कि इन्होंने मदरसा बोर्ड से कब मान्यता हासिल की थी और इनके विद्यार्थी बोर्ड की परीक्षा में पहले कभी शामिल हुए थे या नहीं? मदरसा बोर्ड इस बार परीक्षा फार्म ऑनलाइन जमा करवा रहा है और पंजीकरण कराने वाले मदरसों के ही विद्यार्थी परीक्षा दे पाएंगे। प्रदेश में 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है, इन सभी ने पंजीकरण करा लिया है। इनके स्टाफ का वेतन अब सीधे उनके ही खाते में जाने लगा है। इस कवायद को मदरसा शिक्षा के सुधारीकरण के तौर पर देखा जा रहा है।

एक दौर था, यूपी बोर्ड में परीक्षा शुरू होने तक फार्म जमा कर परीक्षार्थी परीक्षा दे देते थे। इस कमी को दूर करने के लिए नौवीं और ग्यारहवीं के विद्यार्थियों का रजिस्ट्रेशन शुरू कराया गया। मंशा थी कि विद्यार्थी को बोर्ड परीक्षा में शामिल होने के पूर्व कम से कम दो साल अवश्य मिले। इस व्यवस्था को पटरी में आने में कई वर्ष लगे। अब यही काम मदरसा बोर्ड भी कर रहा है। उसे तो अभी मदरसों का पूरा विवरण तक जुटाना है। शुरुआती परेशानियां यहां भी देखने को मिल रही हैं। वस्तुत: मदरसा बोर्ड अगर एक नियंत्रक संस्था है तो उसके पास उससे संबद्ध मदरसों का पूरा रिकार्ड हो। सिलेबस का मानकीकरण हो। परीक्षा पास करने वालों की गुणवत्ता भी बरकरार रहे। बोर्ड की ओर से जारी सर्टिफिकेट का रुतबा कायम हो। तभी इसके विद्यार्थियों को अन्य समकक्ष बोर्डो के बराबर की तरजीह मिल पाएगी। उन्हें प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने का हक मिल सकेगा। यहां अमल में लाने वाली बात है कि तामील देने और तालीम देने का नाटक करने वालों में फर्क होना चाहिए। बेहतर कार्य कर रहे मदरसे पहचाने जाएं और फर्जी का हुक्का पानी बंद होना चाहिए।
तामील देने और तालीम देने का नाटक करने वालों में फर्क होना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]