यह न केवल विरोधाभासी, बल्कि विचित्र सा है कि जब कारोबारी गतिविधियां फिर से शुरू करने की तैयारी की जा रही है तब विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में मजदूर अपने गांव लौट रहे हैं। चूंकि अपने गांव जाना चाह रहे मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है इसलिए उन्हें ट्रेनों से ले जाया जा रहा है। कहना कठिन है कि विभिन्न शहरों में फंसे मजदूरों की संख्या कितनी होगी, लेकिन वह लाखों में तो होगी ही। हैरानी नहीं कि यह संख्या करोड़ का आंकड़ा छू ले। सवाल है कि यदि हमारे औद्योगिक शहर मजदूरों से खाली हो गए तो फिर आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों का थमा पहिया नए सिरे से गति कैसे पकड़ेगा?

यह अच्छा है कि कर्नाटक और तेलंगाना की सरकारें गांव जाने को तैयार मजदूरों से रुकने की अपील कर रही हैं, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। उन्हें और साथ ही अन्य राज्यों को उन कारणों की तह तक जाना होगा जिसके चलते मजदूर अपने गांव जाने के लिए बेचैन हो उठे। इस बेचैनी का बड़ा कारण यही है कि लॉकडाउन के दौरान उनके खाने-रहने की जो व्यवस्था की गई वह संतोषजनक नहीं थी। जब कोई काम न होने से अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित मजदूरों की उचित तरीके से देखभाल की जानी चाहिए थी तब ऐसा नहीं किया गया। इसी कारण उन्होंने अपने गांव जाने का निश्चय किया। इसके आसार कम हैं कि वे अपने निश्चय से डिगेंगे। वे भावनात्मक सहारे की तलाश में हैं और उन्हें लग रहा है कि इसकी पूर्ति उनके गांव-घर में ही हो सकेगी।

नि:संदेह किसी भी मजदूर को जबरन नहीं रोका जा सकता, लेकिन इसकी चिंता तो की ही जानी चाहिए कि आखिर उनके बगैर कारोबारी गतिविधियों को रफ्तार कैसे मिलेगी? यह चिंता इसलिए भी की जानी चाहिए, क्योंकि शहरों में अपनी उपेक्षा-अनदेखी से आहत मजदूरों में से तमाम ऐसे हैं जो फिर नहीं लौटना चाह रहे हैं। बेहतर होगा कि राज्य सरकारें अनिश्चय से घिरे हुए मजदूरों से केवल रुकने की ही अपील न करें, बल्कि उन्हें यह भरोसा भी दिलाएं कि उनके हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे।

यदि इन संभावित कदमों को लेकर कोई स्पष्ट घोषणा की जाए तो यह मुमकिन है कि एक बड़ी संख्या में मजदूर तुरंत गांव लौटने का इरादा त्याग दें। जिन राज्यों से मजदूर जा रहे हैं उनके साथ ही उन राज्यों को भी सक्रिय होना चाहिए जहां के वे बाशिंदे हैं, क्योंकि उनके लिए गांव लौटे मजदूरों की रोजी-रोटी की व्यवस्था करना आसान काम न होगा। बेहतर हो कि केंद्र सरकार भी सक्रिय हो ताकि औद्योगिक शहरों को मजदूरों की कमी का सामना न करना पड़े।