पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान की बहानेबाजी को देखते हुए यह आवश्यक हो गया था कि उसे न केवल सबक सिखाया जाए, बल्कि यह संदेश भी दिया जाए कि भारत अब उसकी चालबाजी में आने वाला नहीं है। यह वक्त बताएगा कि पाकिस्तान कोई सही सबक सीखता है या नहीं, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने उसकी सीमा में घुसकर जैश ए मुहम्मद के सबसे बड़े आतंकी अड्डे पर हमला करके यह बता दिया कि भारत के सहने की एक सीमा है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हमारे लड़ाकू विमानों ने नियंत्रण रेखा के साथ पाकिस्तान की मूल सीमा रेखा भी पार कर एक तरह से उसके मर्म पर प्रहार किया। बालाकोट पाकिस्तान के सैन्य मुख्यालय रावलपिंडी से ज्यादा दूर नहीं है। पाकिस्तान को यह समझ आ जाना चाहिए कि अगर भारत के लड़ाकू विमान बिना किसी बाधा के बालाकोट तक पहुंच सकते हैैं तो वे रावलपिंडी भी पहुंच सकते हैैं। उसे यह भी समझ आना चाहिए कि परमाणु बम का इस्तेमाल करने की उसकी धमकियां अब काम आने वाली नहीं हैैं।

बालाकोट में जैश के जिस आतंकी अड्डे को मटियामेट किया गया वैसे तमाम अड्डे पाकिस्तानी सेना के संरक्षण और समर्थन से ही चलते हैैं। अभी तक पाकिस्तान ऐसे अड्डों को खत्म करने का दिखावा करने के साथ यह बहाना भी बनाता रहा है कि हम तो खुद ही आतंक के शिकार हैैं। यह झूठ न जाने कितनी बार बेनकाब हो चुका है, लेकिन पाकिस्तान बेशर्मी से बाज नहीं आ रहा है। बालाकोट में सफल हवाई हमले को अंजाम देने के बाद भारत दुनिया को यह संदेश देने में भी कामयाब रहा कि उसने पाकिस्तान को निशाना बनाने के बजाय उसके यहां कायम आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।

वायुसेना ने अपनी पराक्रम क्षमता और साहस का जो परिचय दिया वह पाकिस्तान के साथ विश्व समुदाय को भी एक संदेश है। वह यह संदेश इसीलिए दे सकी, क्योंकि प्रधानमंत्री ने जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया। चूंकि पाकिस्तान के लिए दुनिया को यह समझाना मुश्किल होगा कि उसके यहां आतंकी अड्डे नहीं चल रहे थे इसलिए उसके लिए कोई कार्रवाई कर पाना भी कठिन होगा। उसे यह भय भी सताएगा कि उसकी ओर से भारत के खिलाफ कोई कदम उठाया गया तो उसे कहीं अधिक करारा जवाब मिलेगा। पता नहीं कि फिलहाल लीपापोती के साथ तेवर दिखाने की कोशिश कर रहा पाकिस्तान आगे क्या करेगा, लेकिन भारत के लिए यह जरूरी है कि वह उस पर दबाव बनाए रहे।

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यह काम नहीं किया गया था। अब यह जरूर किया जाना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान आसानी से सुधरने वाला नहीं है। इसी के साथ भारत सरकार को कश्मीर के हालात सुधारने के लिए भी ठोस कदम उठाने होंगे, क्योंकि पाकिस्तान वहां के हालात का ही फायदा उठा रहा है। कश्मीर को शांत करने के प्रयासों को राजनीतिक एकजुटता का सहारा मिलना चाहिए। यह अच्छा नहीं हुआ कि पुलवामा हमले के बाद बनी राजनीतिक एकजुटता छिन्न-भिन्न हो रही थी। अब ऐसा न हो, यह देखना सबकी जिम्मेदारी है। राजनीतिक नेतृत्व के साथ आम जनता का भी एकजुट रहना और दिखना समय की मांग है।