यह विचित्र है कि लॉकडाउन में एक और विस्तार के साथ ही तमाम छूट देकर जब कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है तब यह भी देखने में आ रहा है कि विभिन्न राज्य सरकारें आवाजाही के मामले में आपसी सहयोग का परिचय देने से इन्कार कर रही हैं। आखिर ऐसे में आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लक्ष्य की प्राप्ति कैसे की जा सकती है? यदि राज्य सरकारें एक से दूसरे राज्य में आवाजाही पर सख्त रवैया अपनाएंगी तो फिर 33 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ काम करने की छूट तो धरी की धरी ही रह जाएगी। देश की राजधानी से सटे एनसीआर के इलाके में हजारों ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें काम-धंधे के सिलसिले में दिल्ली जाना पड़ता है।

इसी तरह दिल्ली में तमाम ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शहरों में जाना होता है। हालांकि आवाजाही में सीमित छूट दी गई है, लेकिन राज्य सरकारें कोरोना संक्रमण का फैलाव रोकने के नाम पर लगातार सख्त रवैया अपनाती जा रही हैं। यह केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के खिलाफ तो है ही, कारोबारी गतिविधियों को फिर से शुरू करने में अड़ंगा भी है। नि:संदेह बात केवल दिल्ली-एनसीआर में आवाजाही को लेकर दिखाई जाने वाली अड़ंगेबाजी की ही नहीं है।

दिल्ली-एनसीआर की तरह चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला में भी लोगों को आवाजाही में अड़ंगेबाजी से दो-चार होना पड़ रहा है। कुछ ऐसी ही स्थिति देश के अन्य अनेक हिस्सों में है। इस सबसे तो देश को ही नुकसान हो रहा है। इससे दयनीय और कुछ नहीं कि जब राज्यों को आपसी सहयोग को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए तब वे पाले खींचने में लगे हुए हैं। कहीं-कहीं तो सचमुच सड़कों पर खाई खोद दी गई ताकि एक राज्य के लोग दूसरे राज्य में प्रवेश न करने पाएं। इसी तरह कहीं-कहीं एक राज्य की ओर से जारी किए गए पास दूसरे राज्यों ने अमान्य कर दिए। क्या क्षेत्रीयता के ऐसे संकीर्ण प्रदर्शन से कोरोना के संक्रमण पर लगाम लग जाएगी?

नि:संदेह कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए सतर्कता बरतने की आवश्यकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि काम-धंधे के लिए निकले लोगों अथवा माल ढोने वाले ट्रकों की आवाजाही पर जरूरत से ज्यादा सख्ती का परिचय दिया जाए। माना कि कोरोना के साये में रहना होगा, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि राज्य खुद को टापू में तब्दील कर लें। बेहतर हो कि केंद्र सरकार अंतरराज्यीय आवाजाही में अनावश्यक अड़ंगेबाजी का संज्ञान ले और दूसरी ओर राज्य सरकारें यह समझें कि संघीय ढांचा आपसी सहयोग पर टिका है। उन्हें अपने हित के साथ ही देश के हित की भी चिंता करनी होगी।