सिंगापुर में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यापक आर्थिक भागीदारी को लेकर जिस भारतीय दृष्टिकोण को व्यक्त किया वह नया नहीं है। भारतीय प्रधानमंत्री को इस दृष्टिकोण को फिर से व्यक्त करने की जरूरत शायद इसलिए पड़ी, क्योंकि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैसे ही अपना आधिपत्य कायम करना चाह रहा है जैसे वह दक्षिण चीन सागर क्षेत्र कर रहा है। वह एक ओर तो खुले वैश्विक व्यापार की वकालत कर रहा है और दूसरी ओर अपनी विस्तारवादी नीतियों से तमाम पड़ोसी देशों को चिंतित भी कर रहा है। ऐसा रवैया केवल क्षेत्रीय और वैश्विक शांति को ही चोट नहीं पहुंचाता, बल्कि हथियारों की होड़ को भी बढ़ावा देता है।

भले ही प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुले व्यापार, आर्थिक सहयोग के साथ समावेशी विकास और निर्धनता निवारण के लिए काम करने की जरूरत जताई जाती हो. लेकिन तथ्य यह है कि ऐसी बातों के साथ विभिन्न देशों की ओर से ऐसे कदम भी उठाए जाते हैं जिनसे हथियारों की होड़ बढ़ती है। इसके चलते प्रतिस्पर्धा अविश्वास में तब्दील होती है। जब ऐसा होता है तो समावेशी विकास और निर्धनता निवारण के लक्ष्य पीछे छूटते हैं। बेहतर हो कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस बात को और जोरदारी से रेखांकित करे कि हथियारों की होड़ पर विराम लगाए बगैर निर्धनता में जकड़ी दुनिया की विशाल आबादी का उत्थान संभव नहीं है।

नि:संदेह किसी भी क्षेत्र में कोई एक अकेला देश हथियारों की होड़ नहीं रोक सकता। यह तो तभी संभव है जब दुनिया के बड़े देश इस दिशा में ठोस पहल करें। यह चिंताजनक है कि वर्तमान में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इससे भी खराब बात यह है कि कुछ बड़े देश विश्व शांति और सद्भाव के लिए खतरा बने आतंकवाद को पोषित करने वाले देशों को जवाबदेह बनाने से कतराते हैं। ऐसे में भारत और अन्य विकासशील देशों की समस्याएं कहीं अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि उनके सामने यह एक कठिन चुनौती पहले से ही है कि वे अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से को गरीबी रेखा से ऊपर कैसे लाएं? यह सही है कि पिछले एक दशक में भारत समेत अन्य देशों में अच्छी-खासी आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में सफलता मिली है, लेकिन तथ्य यह भी है कि इस मोर्चे पर अभी बहुत कुछ करना है।

यह बहुत कुछ तभी संभव हो पाएगा जब दुनिया के बड़े देश आर्थिक सहयोग और शांति का माहौल बनाएं। अच्छा होगा कि वे सहयोग के उस भारतीय दृष्टिकोण को समझें जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंगापुर में दोहराया और इस क्रम में यह भी बताया कि तकनीक का बेहतर इस्तेमाल किस तरह करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव ला रहा है। बदलाव के इस सिलसिले को तभी गति दी जा सकती है जब क्षेत्रीय और वैश्विक शांति को बल मिले।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह सही कहा कि देश में गरीबी को कम करने और विकास के लाभ निर्धन तबके तक पहुंचाने के लिए उच्च आर्थिक विकास दर जरूरी है। यह विकास दर और कैसे बढ़े, इस पर यदि कोई राष्ट्रीय सहमति बन सके तो वह दुनिया के लिए उदाहरण बन सकती है।