यातायात नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माने को लेकर उठे सवालों के बीच केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान सामने आया है कि नए प्रावधानों का उद्देश्य ट्रैफिक नियमों का पालन सुनिश्चित करना है, न कि सरकारी खजाना भरना।

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत में प्रतिवर्ष करीब पांच लाख दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें डेढ़ लाख लोगों की जान जाती है। यह हर लिहाज से एक भयावह आंकड़ा है, लेकिन यातायात नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाने के साथ ही जिन कुछ और उपायों की जरूरत है उनकी पूर्ति भी तो की जानी चाहिए।

सबसे पहले तो यही आवश्यक था कि लोगों को आगाह किया जाता कि यातायात के नए नियमों का उल्लंघन कितना महंगा साबित होगा? इसी क्रम में कोई जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए था। कोई नहीं जानता कि ऐसा कुछ करने की जरूरत क्यों नहीं समझी गई? 

शायद ऐसे किसी अभियान के अभाव के चलते ही ऐसे समाचार आ रहे हैं कि ट्रैक्टर चालक पर 59 हजार तो दोपहिया वाहन चालकों पर 24 हजार रुपये का जुर्माना लगा। कुछ मामलों में तो वाहन की कीमत से अधिक जुर्माना लगा है।

ऐसे समाचार तो दहशत का माहौल ही बनाएंगे। अभी भी समय है। लोगों को जागरूक और आगाह करने का काम किया ही जाना चाहिए। यह मान लेने का कोई मतलब नहीं कि सभी लोग यातायात के नए नियमों से अवगत हो गए हैं।

इसमें संदेह नहीं कि सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण वाहन चालकों की लापरवाही होती है, लेकिन सड़कों के डिजाइन में खामी, सड़कों के गड्ढे, सड़क के किनारे का अतिक्रमण, आवारा पशु, रोशनी की कमी के कारण भी हादसे होते हैं।

स्पष्ट है कि सड़कों के बेहतर रखरखाव के साथ ही यातायात व्यवस्था भी दुरुस्त की जानी चाहिए। क्या यह उचित नहीं होगा कि सड़कों के रखरखाव में लापरवाही बरतने वालों को भी भारी जुर्माने का भागीदार बनाया जाए? 

कम से कम यातायात पुलिस के संख्याबल के अभाव को तो प्राथमिकता के आधार पर दूर ही किया जाना चाहिए। चूंकि भारी जुर्माने के प्रावधान अमल में आने के बाद अवैध वसूली का भी अंदेशा है इसलिए ऐसी कोई व्यवस्था की जानी चाहिए कि ट्रैफिक पुलिस यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ इलेक्ट्रानिक सुबूतों से लैस हो।

यह भी आवश्यक है कि सरकारी वाहन किसी तरह की रियायत न पाने पाएं और भारी वाहनों पर खास निगाह रखी जाए। सड़क दुर्घटनाएं रोकने के मकसद को पूरा करने में संकीर्ण राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता, लेकिन यह एक विडंबना ही है कि कुछ राज्य सरकारें असहयोग का प्रदर्शन करती हुई दिख रही हैं।

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