पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक में घपलेबाजी के बाद सरकारी क्षेत्र के बैंक पंजाब एंड सिंध बैंक की ओर से यह सूचना देना घोर निराशाजनक है कि भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी ने उसके साथ 44 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की है। वास्तव में यह भी एक किस्म की धोखाधड़ी ही है कि पंजाब एंड सिंध बैंक ने अब जाकर यह सार्वजनिक करना जरूरी समझा कि चोकसी ने उसके साथ ठगी की है। क्या यह जानकारी तभी सामने नहीं आनी चाहिए थी जब चोकसी और नीरव मोदी के देश से भाग जाने की खबर आई थी? कर्ज लेकर उसे चुकाने से जानबूझकर इन्कार करने अथवा छल-छदम से लोन लेकर उसे हड़प करने या फिर विदेश भागने वाले तत्वों के बारे में हमारे बैंक जिस तरह जानकारी देने में शिथिलता बरत रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वे जरूरी सूचनाएं छिपाने में अभी भी माहिर हैं।

क्या अब भी बैंकों का ऑडिट सही तरह नहीं हो रहा है? क्या रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है कि सरकारी क्षेत्र के बैंक उसके नियम-निर्देशों का पालन करें? एक सवाल यह भी है कि जब नोटबंदी के समय यह पता चल गया था कि सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली भरोसेमंद नहीं तो फिर उसी समय उनके नियमन की उपयुक्त व्यवस्था क्यों नहीं की गई? यह सवाल इसलिए, क्योंकि पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक में घपला होने के बाद वित्त मंत्री ने कहा कि इस तरह के बैंकों के नियमन की खामियों पर रिजर्व बैंक एवं वित्त मंत्रालय के अधिकारी चर्चा करेंगे। क्या इस चर्चा के लिए घोटाला होने का इंतजार किया जा रहा था?

वित्त मंत्री ने यह भी कहा है कि जरूरत पड़ी तो सहकारी बैंकों का संचालन बेहतर बनाने के लिए कानून बनाया जाएगा। कायदे से यह काम तो अब तक हो जाना चाहिए था। मोदी सरकार को अपने पहले कार्यकाल की शुरूआत में ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों की खस्ता हालत का आभास हो गया था। सरकार की ओर से बैंकों की कार्यप्रणाली दुरूस्त करने के लिए कई कदम भी उठाए गए, लेकिन उनकी स्थिति में अभी तक सुधार नहीं आ सका है। इसका प्रमाण सरकारी बैंकों की ओर से करीब पौने तीन लाख करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डालना है।

इसका मतलब है कि बैंकों को भारी-भरकम एनपीए से मुक्ति नहीं मिलने वाली। अगर बैंकों के बारे में इसी तरह की सूचनाएं सामने आती रहीं तो उनके साथ-साथ सरकार की साख को भी चोट पहुंचेगी और लोगों का भरोसा भी डिगेगा। बेहतर हो कि सरकार बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कमर कसे, क्योंकि उनकी हालत ठीक होने का नाम नहीं ले रही।