महज दो दिनों में लोकसभा से 45 सांसदों का निलंबन यही बता रहा है कि सांसद किस तरह हंगामा करने पर आमादा रहने लगे हैैं। लोकसभा अध्यक्ष को जिस तरह लगातार दूसरे दिन हंगामा करके सदन की कार्यवाही बाधित करने वाले सांसदों को निलंबित करना पड़ा उससे यह भी पता चल रहा कि वे उनकी सख्ती से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं। हैरानी नहीं कि निलंबित सांसद अपनी गलती पर विचार करने और अपने आचरण में सुधार लाने के बजाय इसकी शिकायत करते दिखे कि उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

आखिर यह किसी से छिपा नहीं कि इसके पहले लोकसभा अध्यक्ष ने जब हंगामा करने वाले सांसदों को निलंबित किया था तो उनके बचाव में कई अन्य सांसद खड़े हो गए थे। जाहिर है इससे हंगामा करने वाले सांसदों को बल ही मिला। नि:संदेह सांसदों को निलंबित करना समस्या का हल नहीं, लेकिन यह भी ठीक नहीं कि उन्हें संसद की कार्यवाही ठप करने की खुली छूट दे दी जाए। यह संसदीय गरिमा के सर्वथा प्रतिकूल है कि सांसद सदन में बहस करने के बजाय नारे लिखी तख्तियां लहराने का काम करें। दुर्भाग्य से अब ऐसा ही अधिक होता है। विगत दिवस ही राफेल सौदे पर चर्चा के दौरान कुछ कांग्रेसी सांसद कागज के जहाज बनाकर उड़ाने में लगे हुए थे। ऐसा बचकाना व्यवहार तो संसद की गरिमा से खुला खिलवाड़ ही है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सांसदों का एक वर्ग यह मान बैठा है कि उसका प्राथमिक काम संसद में नारे लगाना और शोर मचाना है। वे सवाल पूछने और चर्चा करने से ज्यादा दिलचस्पी नारे लिखी तख्तियां तैयार करने में दिखाने लगे हैैं। उनकी कोशिश यह भी रहती है कि नारे लिखी ये तख्तियां टीवी कैमरों में कैद हो जाएं।

माना यह गया था कि संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण सांसदों को संसदीय कामकाज के प्रति और संजीदा बनाएगा, लेकिन अब ठीक इसका उलटा दिखने लगा है। बेहतर हो कि इस पर विचार हो कि सीधा प्रसारण संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में सहायक बन रहा है या सिरदर्द? बीते कुछ समय से सांसद सदनों के अंदर काम करने से ज्यादा संसद परिसर में धरना-प्रदर्शन की मुद्रा में भी दिखने लगे हैैं। अगर संसद जाकर सड़क की राजनीति करनी है तो फिर वहां हाजिरी देने का मतलब ही क्या है?

संसद में काम कम और हंगामा अधिक होने के लिए जितने जिम्मेदार सांसद हैैं उससे अधिक राजनीतिक दलों का नेतृत्व। आम तौर पर अपने नेता और नेतृत्व के इशारे पर ही सांसद हंगामा करते हैैं। एक समस्या यह भी है कि संसद में अपने दायित्वों का सही तरह निर्वाह करने वाले सांसदों से अधिक चर्चा उन्हें मिलने लगी है जो येन-केन-प्रकारेण सदन की कार्यवाही में खलल डालते हैैं। संसद सत्तापक्ष और विपक्ष के समन्वय एवं ज्वलंत मसलों पर सार्थक बहस के प्रति दिलचस्पी से ही चल सकती है, निरर्थक सर्वदलीय बैठकों से नहीं। बेहतर हो कि सभी दल गंभीरता से विचार करें कि इस स्थिति का निर्माण कैसे हो। अगर संसद में इसी तरह हंगामा होता रहा तो उसकी महत्ता कायम रहना कठिन है।