कोरोना संकट से बचने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि खत्म होने में अब जब एक सप्ताह ही बचा है तब फिर यह सही समय है कि उसके बाद के हालात का सामना करने की रूपरेखा बनाई जाए। ऐसा करते समय देश के उन इलाकों को लॉकडाउन में ही रखना जरूरी हो सकता है जहां कोरोना वायरस की चपेट में आए लोगों की संख्या अधिक है या फिर जहां के बारे में यह संदेह है कि वहां कोरोना मरीज हो सकते हैं। दुर्भाग्य से ऐसे कई इलाके हैं और इसकी एक बड़ी वजह तब्लीगी जमात के लोगों की घोर गैर-जिम्मेदाराना हरकतें हैं।

चूंकि इन जमातियों ने अपनी हरकतों से कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कठिन बना दिया है इसलिए उनके प्रति सख्ती बरतने में तनिक भी संकोच नहीं किया जाना चाहिए। उनकी सख्त निगरानी करते हुए ही आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को गति देने के कदम उठाने का काम किया जाना चाहिए। ऐसे कदम उठाते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि हर स्तर पर आवश्यक सावधानी का परिचय दिया जाए।

लॉकडाउन को लागू करने का फैसला यकायक लेना जरूरी भी था और मजबूरी भी, लेकिन उससे बाहर आने का फैसला सुविचारित और सुव्यवस्थित होना चाहिए ताकि कम से कम समस्याओं का सामना करना पड़े। समस्याओं का सामना करते और सतर्कता का परिचय देते हुए आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को शुरू करने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि लोगों की सेहत के साथ ही उनकी रोजी-रोटी की भी चिंता करनी है। नि:संदेह इस चिंता का समाधान तभी होगा जब कारोबार पटरी पर लौटेगा। यदि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए चुनिंदा कारोबार जारी रह सकता है तो फिर अन्य कारोबारी गतिविधियों को भी जारी किया जा सकता है। यह अच्छी बात है कि इस सिलसिले में प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों से चर्चा हो चुकी है, लेकिन आवश्यक यह है कि इसकी कोई कारगर योजना बने। 

केंद्र और राज्य सरकारों को कारोबारी गतिविधियों को फिर से शुरू करने की कार्ययोजना बनाने के साथ ही फसलों की कटाई और अन्न के भंडारण और वितरण की भी कार्ययोजना को अंतिम रूप देने के लिए सक्रिय होना चाहिए। चूंकि इन सब कार्ययोजनाओं पर अमल के साथ ही परिवहन और आवागमन बढ़ेगा इसलिए इसकी भी कोई प्रभावी रूपरेखा बनानी होगी कि सार्वजनिक स्थलों में भीड़-भाड़ न होने पाए और लोग सेहत, स्वच्छता के साथ सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर केवल सतर्क ही नहीं रहें, बल्कि उसका पालन भी करें। स्पष्ट है कि लॉकडाउन के बाद हालात सामान्य करने में जितना चौकस शासन-प्रशासन को रहना होगा उतना ही आम जनता को भी। तब्लीगियों के ओछे आचरण को देखते हुए जोखिम उठाने की गुंजाइश और कम हो गई है।