प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर चौकीदार चोर है कहने के लिए राहुल गांधी को एक और हलफनामा देकर माफी मांगनी पड़ी। इसके पहले उन्होंने करीब 20 पेज का हलफनामा देकर अपनी गलतबयानी के लिए गोल-मोल तरीके से माफी मांगी थी। इसके और पहले उन्होंने केवल खेद जताकर कर्तव्य की इतिश्री करनी चाही थी। नए हलफनामे में माफी मांगने के साथ ही राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से यह आग्रह किया है कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी जाए। पता नहीं सुप्रीम कोर्ट क्या करता है, लेकिन यह ठीक नहीं होगा कि कोई सरासर झूठ बोले और फिर महज माफी मांगकर बच निकले।

बेहतर हो कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कोई नजीर पेश करने वाला फैसला दे ताकि कोई भी सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर या फिर बगैर उसका हवाला दिए उस तरह झूठ की राजनीति न कर सके जैसे कांग्रेस अध्यक्ष कर रहे हैैं। क्या यह अजीब नहीं कि राहुल गांधी यह स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैैं कि राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर चौकीदार चोर कहना तो उनकी भूल है, लेकिन बगैर अदालती हवाले के ऐसा कहते रहना सही है? आखिर वह अपनी रैलियों में किस आधार पर मोदी को चोर बता रहे हैैं? उनके पास ऐसे कौैन से तथ्य हैैं जो वह प्रधानमंत्री मोदी के साथ उद्योगपति अनिल अंबानी को भी चोर कह रहे हैैं? ध्यान रहे कि राफेल सौदे को संदिग्ध करार देने के लिए जो भी तथ्य सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए थे उनकी पड़ताल कर उसने यही पाया था कि इस सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं।

क्या नीति, नियम और नैतिकता का तकाजा यह नहीं कहता कि सुप्रीम कोर्ट जब तक राफेल सौदे को लेकर दिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं कर लेता तब तक राहुल गांधी चोर-चोर का शोर मचाने से बाज आएं? वह बिना किसी प्रमाण केवल प्रधानमंत्री को चोर ही नहीं कह रहे, बल्कि यह झूठा दावा भी कर रहे हैैं कि उन्होंने अनिल अंबानी के खाते में 30 हजार करोड़ रुपये डाले। मुश्किल यह है कि राहुल गांधी और उनके साथी यह भी साबित करना चाह रहे हैैं कि मौजूदा प्रधानमंत्री को तो चोर कहना उनका अधिकार है, लेकिन अगर कोई पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ टिप्पणी करे तो वह अपराध और अनैतिक है।

अगर चौकीदार चोर कहना सही है तो फिर भ्रष्टाचारी नंबर वन से आपत्ति क्यों? कांग्रेस की ओर से यह भी तर्क दिया जा रहा है कि दिवंगत व्यक्तियों के खिलाफ कुछ नहीं कहा जाना चाहिए। एक तो कांग्रेस के नेता खुद ही इस तर्क का पालन नहीं कर रहे हैैं और दूसरे इसका कोई मतलब नहीं कि दिवंगत नेताओं के आदर की सीख देते हुए मौजूदा नेताओं के अपमान में कोई कसर न छोड़ी जाए? ऐसा लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी अपने लिए अलग नियम चाहते हैैं और अपने विरोधियों के लिए अलग। यह तो एक तरह का सामंतवाद ही है। कांग्रेस को यह समझ आए तो बेहतर कि लोकतंत्र में सामंती मानसिकता के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।

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