यदि कांग्रेस सचमुच किसानों की कर्ज माफी के वायदे के साथ अगले आम चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है तो इसका मतलब है कि उसके पास न तो कोई नया विचार है और न ही नई नीति। कर्ज माफी को बाजी पलटने वाली योजना समझना एक किस्म का राजनीतिक दीवालियापन ही है, क्योंकि अध्ययन और अनुभव यही बता रहे हैं कि कर्ज माफी के सिलसिले ने न केवल किसानों, बल्कि बैंकों का बेड़ा गर्क करने का काम किया है। इस तरह की नीतियां आर्थिक नियमों के विपरीत तो हैं ही, अर्थव्यवस्था को स्थाई तौर पर नुकसान पहुंचाने वाली भी हैं।

यह सही है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार अपने पहले कार्यकाल में किसान कर्ज माफी की जो भारी भरकम योजना लाई थी उसे चुनावी जीत में सहायक माना गया, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस योजना ने किसानों का तनिक भी भला नहीं किया। इसका प्रमाण यह है कि महाराष्ट्र के जिन किसानों के लिए खास तौर पर यह योजना लाई गई थी वे फिर से कर्ज के जाल में फंस गए और चौतरफा राजनीतिक दबाव के चलते पिछले दिनों फड़नवीस सरकार को न चाहते हुए भी किसानों के लिए कर्ज माफी की योजना लानी पड़ी।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब कांग्रेस को कर्ज माफी वाली योजनाओं की नाकामी से सबक सीखना चाहिए तब वह एक तरह से जानबूझकर गलती दोहराने की तैयारी कर रही है। इससे तो यही पता चलता है कि उसके पास ठोस वैकल्पिक नीतियों और एजेंडे का घोर अभाव है।

समझना कठिन है कि कांग्रेस दीवार पर लिखी यह इबारत देखने के लिए क्यों नहीं तैयार कि कर्ज माफी की योजनाएं किसानों को कहीं नहीं ले जा पा रही हैं। समस्या केवल यह नहीं कि कर्ज माफी की योजनाएं अलाभकारी साबित हो रही हैं, बल्कि यह भी है कि वे किसानों की आदत खराब कर रही हैं। किसानों के बीच यह संदेश जा रहा है कि कर्ज ले लो और फिर उसे चुकाने की चिंता करने के बजाय कर्ज माफी की योजनाओं का इंतजार करो।

बात चाहे महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के किसानों की हो या फिर अन्य इलाकों के किसानों की, यह किसी से छिपा नहीं कि कर्ज माफी की कोई भी योजना उनकी हालत में सुधार करने में समर्थ नहीं हो सकी। यदि कांग्रेस के नीति-नियंता यह नहीं देख पा रहे हैं कि कर्ज माफी की योजनाओं से लाभान्वित होने वाले किसान फिर कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं तो इसका सीधा मतलब है कि वे जमीनी हकीकत से अनजान बने रहना चाहते हैं।

यह शुभ संकेत नहीं कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में यह माहौल बनाने में जुट गई है कि कर्ज माफ करने से किसानों के दु:ख दूर हो जाएंगे। कुछ जगह तो उसके नेता यह घोषणा भी कर चुके हैं कि कांग्रेस के सत्ता में आते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। यह किसानों और अर्थव्यवस्था के साथ जानबूझकर किया जाने वाला छल है। यह वक्त की मांग है कि चुनाव आयोग या फिर रिजर्व बैंक कर्ज माफी की योजनाओं को वित्तीय अनुशासनहीनता घोषित कर उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें।