पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर जिले के एक गांव में गोवंश काटे जाने से उपजे आक्रोश ने जैसी भयावह अराजकता का रूप धारण किया वह इसलिए कहीं अधिक विचलित एवं चिंतित करने वाला है, क्योंकि उसके कारण एक पुलिस इंस्पेक्टर समेत दो लोगों की जान चली गई। गोवध निषेध होते भी गोवंश काटे जाने की घटनाएं कानून के शासन के लिए एक चुनौती हैैं और ऐसी किसी घटना के बाद लोगों का आक्रोशित होना समझ में आता है, लेकिन इसका कोई मतलब नहीं कि उसकी अभिव्यक्ति के नाम पर सब कुछ तहस-नहस कर दिया जाए और यहां तक कि गोहत्या की घटना का संज्ञान ले रहे पुलिसकर्मियों की जान के पीछे पड़ जाया जाए? आखिर बुलंदशहर में पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमले और पुलिस चौकी फूंकने के कृत्य को सभ्य समाज के अनुरूप कैसे कहा जा सकता है? क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि गाय के प्रति आस्था का प्रदर्शन इस तरह हो कि इंसानों की जान पर बन आए?

आखिर बुलंदशहर में अराजकता को हवा देकर पुलिस इंस्पेक्टर और एक अन्य युवक की जान लेने वाले गोसेवक अथवा गोभक्त कैसे कहे जा सकते हैैं? क्या गाय के प्रति आस्था यही सिखाती है कि किसी इंसान की जान लेने की हद तक चला जाया जाए? पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ देश के अन्य अनेक हिस्सों में यह पहली बार नहीं जब गोहत्या अथवा गोवंश की तस्करी के खिलाफ रोष प्रकट करनी उतरी भीड़ ने हिंसक व्यवहार किया हो और उसके चलते किसी की जान गई हो। इस तरह की घटनाएं रह-रह कर सामने आ रही हैैं। हालांकि हर ऐसी घटना गाय के प्रति आस्था रखने वालों की बदनामी का कारण बनती है, फिर भी कोई सबक नहीं सीखा जा रहा है।

इससे इन्कार नहीं कि कुछ तत्व ऐसे हैैं जो गोवध निषेध कानून को धता बताते हुए गोहत्या से बाज नहीं आ रहे हैैं, लेकिन उनके खिलाफ रोष प्रकट करने और उन्हें दंड का भागीदार बनाने के लिए पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने के क्रम में ऐसा कुछ हर्गिज नहीं किया जाना चाहिए जो कानून एवं व्यवस्था के साथ सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा बन जाए। गोहत्या का विरोध किया ही जाना चाहिए, लेकिन ऐसा करते हुए अराजकता फैलाने अथवा कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को कतई नहीं मिल सकती। सभ्य समाज को नीचा दिखाने वाली बुलंदशहर जिले की घटना की उच्च स्तरीय जांच होनी ही चाहिए, लेकिन बेहतर होगा कि एक ओर जहां अराजकता की आग फैलाने वालों पर शिकंजा कसा जाए वहीं दूसरी ओर उन कारणों की तह तक भी जाया जाए जिनके चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गोहत्या की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैैं।

चूंकि गोहत्या की घटनाओं और उनके बाद लोगों के रोष से उपजने वाले हालात कानून के शासन के साथ सामाजिक समरसता पर भी चोट कर रहे हैैं इसलिए शासन-प्रशासन के साथ समाज की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह गाय के नाम पर होने वाली अप्रिय घटनाओं से बचने की राह खोजे। इस जिम्मेदारी का निर्वाह इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि बुलंदशहर सरीखी घटनाएं समाज और राष्ट्र के अपयश का कारण बनती हैैं।