नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में हुई हिंसा के पीछे कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआइ का हाथ होने की आशंका गहराना चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश पुलिस की मानें तो राज्य के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर जो हिंसा हुई वह इस संगठन की साजिश के चलते ही हुई। पुलिस ने इस संगठन के कुछ संदिग्ध सदस्यों को गिरफ्तार भी किया है। हिंसक गतिविधियों में पीएफआइ की लिप्तता संबंधी खुफिया सूचनाओं के चलते यदि केंद्रीय गृह मंत्रालय उस पर पाबंदी के बारे में विचार-विमर्श करने को बाध्य है तो इसका मतलब है कि मामला कहीं अधिक गंभीर हैैं।

पीएफआइ झारखंड में पहले से ही प्रतिबंधित है और कुछ अन्य राज्यों में भी उसकी गतिविधियां संदिग्ध पाई गई हैैं। तथ्य यह भी है कि इसे प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी के सहयोगी समूह के तौर पर देखा जाता है। पीएफआइ ने कुछ ही समय में केरल से निकलकर जिस तरह देश के कई राज्यों में अपनी जड़ें जमा ली हैैं उससे यही पता चलता है कि उसकी विचारधारा तेजी से फैल रही है। यह कोई शुभ संकेत नहीं, क्योंकि भले ही यह संगठन मुसलमानों और दलितों के अधिकारों की बात करता हो, लेकिन उसके तेवर और तौर-तरीके सवाल खड़े करने वाले हैैं।

पीएफआइ के कई सदस्य हिंसक गतिविधियों में शामिल पाए गए हैैं और केरल में तो उनके ठिकानों से आतंकी संगठनों का समर्थन करने वाला साहित्य और हथियार भी बरामद किए जा चुके हैैं। इसके बावजूद विडंबना यह है कि केरल के राजनीतिक दल पीएफआइ को संरक्षण देने को तत्पर रहते हैैं। केरल विधानसभा में पक्ष-विपक्ष की सहमति से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित होना यही बताता है कि अंध विरोध की राजनीति किस तरह अपनी हदें पार कर रही है।

नागरिकता कानून विरोधी हिंसा में पीएफआइ और ऐसे ही अन्य अतिवादी संगठनों की हिस्सेदारी के अंदेशे के बाद भी विपक्षी दल अपने रुख-रवैये को बदलने से जिस तरह इन्कार कर रहे हैैं उससे वे सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम समाज का ही कर रहे हैैं। वे अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों की खातिर मुस्लिम समाज की छवि से खेल रहे हैैं। बेहतर हो कि मुस्लिम समाज खुद ही इस पर गौर करे कि उसका इस्तेमाल कौन लोग किस मकसद से कर रहे हैैं? उसे इस पर भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए कि पीएफआइ सरीखे अतिवादी संगठन उसे मुख्यधारा से दूर ले जाने का ही काम कर रहे हैैं। नागरिकता कानून के विरोध को मुस्लिम हित का मसला बनाने वाले दावा कुछ भी करें, उन्हें मुसलमानों का हितैषी बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता।