नव वर्ष के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साक्षात्कार में करीब-करीब सभी ज्वलंत मुद्दों पर जिस विस्तार से जवाब दिए उससे आने वाले दिनों का राजनीतिक एजेंडा तय हो सकता है। इसी साक्षात्कार में उन्होंने अपनी सरकार की ओर से किए गए कार्यों का मूल्यांकन जिस तरह जनता पर छोड़ा उससे यह स्पष्ट हुआ कि उन्हें अपनी उपलब्धियों पर संतोष है और वह आम चुनावों का सामना करने की तैयारी कर रहे हैैं। प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था, राजनीति, रक्षा-सुरक्षा और सामाजिक मसलों से लेकर अन्य अनेक मुद्दों से संबंधित सवालों के जो जवाब दिए उन पर विपक्ष की असहमति और अलग राय हो सकती है, लेकिन बेहतर होगा कि वह यह समझे कि अयोध्या विवाद का शीघ्र समाधान सबके हित में है और इसे राजनीति का विषय बनाने से बचा जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए फिलहाल अध्यादेश नहीं लाया जा रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की कोई पहल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही हो सकती है। यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने एक तरह से वह मांग खारिज कर दी जिसके तहत अयोध्या विवाद के समाधान के लिए कानून बनाने या फिर अध्यादेश लाने को कहा जा रहा है। मौजूदा हालात में यह ठीक भी है, क्योंकि जो मसला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन हो उस पर कानून बनाने या फिर अध्यादेश लाने का औचित्य नहीं बनता। इसलिए और भी नहीं बनता, क्योंकि अयोध्या विवाद के हल के लिए लाया जाने वाला कोई भी कानून न्यायपालिका के समक्ष ही पहुंचेगा। इस तरह मामला वहीं का वहीं रहेगा।

अयोध्या मसले पर प्रधानमंत्री का बयान एक ऐसे समय आया जब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिर से शुरू होने वाली है। यह मसला सतह पर आया ही इसलिए, क्योंकि बीते साल के अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सुनवाई टाल दी थी। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए मांग तेज ही नहीं होती। जो भी हो, कम से कम अब यही अपेक्षित है और आवश्यक भी कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले का निपटारा शीघ्र करे। इससे भी अच्छा यह होगा कि इस मसले का समाधान आपसी बातचीत के जरिये निकालने की कोशिश की जाए। इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता कि भारतीय समाज को प्रभावित करने वाले इस मसले का हल आपसी सहमति से निकले। इससे देश में न केवल शांति एवं सद्भाव का वातावरण बनेगा, बल्कि दुनिया को एक अच्छा संदेश जाएगा।

अयोध्या विवाद को आपसी सहमति से समाधान एक सुनहरा अवसर है। इसका उपयोग किया जाना चाहिए। यह सही है कि अतीत में आपसी बातचीत के जरिये अयोध्या विवाद का समाधान निकालने की कोशिश सफल नहीं हो सकी, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि नए सिरे से कोई पहल न की जाए। अगर राजनीतिक संकीर्णता और स्वार्थ को परे रखा जा सके और सामाजिक सद्भाव की महत्ता को समझा जा सके तो इस जटिल विवाद का समाधान बहुत आसानी से निकल सकता है। बेहतर होगा कि वे लोग आएं जो अयोध्या विवाद के समाधान के साथ सद्भाव के भी हामी हैैं।