यह जानना हैरान-परेशान और साथ ही भयभीत करने वाला है कि जब देश-दुनिया में कोरोना वायरस के खौफ के चलते सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दिया जा रहा था और हर तरह के जमावड़े से बचने की नसीहत-हिदायत भी दी जा रही थी तब दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तब्लीगी जमात के एक केंद्र में तमाम लोग एकत्रित थे। इनमें देश के साथ विदेश से आए लोग भी शामिल थे। इनमें से करीब दो दर्जन के बारे में संदेह है कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। खतरा इसलिए बढ़ गया है कि एक तो यहां से अपने राज्य तेलंगाना लौटे छह लोगों की संक्रमण से मौत हो चुकी है और दूसरे, यह पता चल रहा कि इस केंद्र में देश के विभिन्न राज्यों से आए लोग अपने-अपने घरों को लौट चुके हैं। अब इन सबके साथ इनके संपर्क में आए लोगों की भी तलाश करनी पड़ रही है।

साफ है कि तब्लीगी जमात के आयोजकों ने अपनी लापरवाही से पूरे देश के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर दिया। हालांकि आयोजक इस दलील के सहारे खुद को निर्दोष बता रहे हैं कि देशव्यापी लॉकडाउन के बाद तमाम लोग उनके यहां फंस गए और पुलिस ने उन्हें निकालने के अनुरोध की अनदेखी की, लेकिन सवाल यह है कि जब लॉकडाउन के काफी पहले ही दिल्ली सरकार ने दो सौ से अधिक लोगों के जमावड़े पर रोक लगा दी थी तब फिर इस धार्मिक स्थल में लोगों का आना-जाना क्यों लगा रहा? यह अनुत्तरित प्रश्न आयोजकों की लापरवाही की ही पोल खोल रहा है।

तब्लीगी जमात के कर्ता-धर्ता अपनी सफाई में कुछ भी कहें, यह किसी से छिपा नहीं कि अन्य देशों और खासकर पाकिस्तान से भी इसी तरह की खबरें आ रही हैं कि इस जमात के लोग मजहबी प्रचार के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की धुन में सरकारी आदेशों-निर्देशों को ठेंगा दिखाकर जमावड़ा लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। नि:संदेह इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि निजामुद्दीन में कई देशों के ऐसे मजहबी प्रचारक मिले जिन्होंने वीजा नियमों का उल्लंघन करने में गुरेज नहीं किया।

यह शुभ संकेत नहीं कि दिल्ली के साथ देश के अन्य हिस्सों में भी विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक स्थलों में सोशल डिस्टेंसिंग को ताक पर रखा जा रहा है। यह एक तरह से कोरोना वायरस के फैलाव को जानबूझकर बढ़ाने वाली हरकत है। केंद्र और राज्य सरकारों के साथ उनकी विभिन्न एजेंसियों और साथ ही समाज के हर तबके को सोशल डिस्टेंसिंग के किसी भी उल्लंघन को देशघाती आचरण की तरह लेना होगा और यह समझना होगा कि जिंदगी बचाने की यह जंग आम लोगों के सहयोग के बिना नहीं लड़ी-जीती जा सकती।