राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में पेश आर्थिक सर्वे रिपोर्ट का यह निष्कर्ष बिहार के साथ पूरे देश का हौसला बढ़ाने वाला है कि वर्ष 2017-18 में सूबे की विकास दर राष्ट्रीय औसत सात फीसद के मुकाबले 10.30 फीसद रही। जाहिर है कि देश की विकास दर को सम्मानजनक शक्ल देने में बिहार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। पीएम नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि बिहार के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता। यह धारणा मौजूदा वित्तीय वर्ष की विकास दर से भी साबित होती है। यह स्वाभाविक भी है। बिहार देश के बड़े राज्यों में एक है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक संकेतों का सीधा असर राष्ट्रीय परफॉरमेंस पर नजर आता है। इसमें दो राय नहीं कि राज्य सरकार विकास के मुद्दे पर गंभीर रही है तथा उपलब्ध संसाधनों में सूबे के विभिन्न सेक्टरों में विकास की प्रक्रिया यथासंभव तेज करने की कवायद की गई। इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पिछले साल राज्य में नीतीश कुमार के ही नेतृत्व में राजग सरकार गठित होने के बाद केंद्र-राज्य संबंधों में समझदारी बढ़ी है।

राज्य की विकास परियोजनाओं के लिए केंद्र से धन आवंटन की रुकावटें कम होने से विकास कार्य तेज हुए। इसकी झलक आर्थिक सर्वे में दिख रही है। लंबे समय से देश के समक्ष बिहार की नकारात्मक छवि पेश की जाती रही है। अपनी विकास दर राष्ट्रीय औसत से आगे करके बिहार ने अपने सभी आलोचकों को तर्कपूर्ण जवाब दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि समीक्षक अब बिहार के प्रति अपना नजरिया बदलेंगे। राज्य सरकार ने विकास प्रक्रिया तेज करते हुए जिस तरह शराबबंदी, दहेजबंदी और बाल विवाह निषेध जैसे समाज सुधार अभियान भी संचालित किए, वह अनुकरणीय है। शराबबंदी की मांग तो अब कई अन्य प्रदेशों में उठ रही है। सूबे की बदलती छवि में हर बिहारी की भूमिका है, पर इसका सर्वाधिक श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जाता है जिन्होंने तमाम आंतरिक और बाहरी प्रतिकूलताआें के बावजूद राज्य का मनोबल नहीं टूटने दिया। सबकी जिम्मेदारी है कि विकास की यह गति किसी भी वजह से सुस्त न पड़ने पाए ताकि बिहार खुद को सर्वश्रेष्ठ राज्य साबित कर सके।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]