अगर सबकुछ सही रहा तो आने वाले दिनों में चरखी दादरी, गोहाना और हांसी प्रदेश के नए जिलों में शुमार हो जाएंगे। हालांकि मंत्रियों की उप समिति ने अभी इसकी सिफारिश ही की है, लेकिन जिस तरह स्थानीय लोगों में खुशी का माहौल है, उससे इसकी अहमियत और आवश्यकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। समिति ने छह नए खंड, सात उपमंडल, पांच तहसील और एक उप तहसील बनाने की सिफारिश भी की है, मगर जिलों का प्रस्ताव काफी मायने रखता है। राजनीतिक के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक रूप से भी इसकी काफी अहमियत है। अगर गोहाना को ही लें, यह जानकर ताज्जुब हो रहा है कि जिस शहर को ब्रिटिश हुकूमत के समय वर्ष 1826 में तहसील का दर्जा प्राप्त था, उसे 190 साल बाद जिले के लिए उपयुक्त समझा गया। भौगोलिक रूप से भी यह विशेष स्थान रखता है। रेल और प्रमुख सड़क मार्गों से जुड़ा होने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी इसका खास स्थान है। शहीद भगत फूर्ल ंसह ने यहां के भैंसवाल कलां गांव में 23 मार्च, 1920 में गुरुकुल की नींव रखी थी। उन्होंने 1936 में केवल तीन छात्राओं के साथ खानपुर कलां में कन्या गुरुकुल की स्थापना की थी। अब ये दोनों संस्थाएं उत्तर भारत का पहला महिला विश्वविद्यालय का दर्जा पा चुकी हैं। उद्योग-धंधे भी यहां ठीक-ठाक हैं। इन सबके बावजूद इसे जिला बनाने की मांग की लगातार अनदेखी की जाती रही। पहले रोहतक तो बाद में सोनीपत जिले का हिस्सा बनाया गया। यही हाल प्रदेश के सबसे बड़े उपमंडल चरखी दादरी का है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व तत्कालीन जींद रियासत का यह प्रमुख जिला मुख्यालय था। सन् 1966 को हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद हर साल इसके जिला मुख्यालय बनाने की चर्चा होती, लेकिन हर बार मायूसी हाथ लगी। हिसार के हांसी के साथ भी भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं। आबादी के बढ़ते दबाव और उद्योग-धंधों के विकास के साथ सुशासन के लिए भी जरूरी है कि हांसी, चरखी दादरी और गोहाना को जिला बनाया जाए। राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा के विकास ने छोटे राज्यों की परिकल्पना को मजबूत किया है। सुशासन के लिए जरूरी है कि प्रशासन तक आमजन की सुलभ पहुंच हो और यह तभी संभव है जब जिले छोटे होंगे। यह सही है कि इससे सरकारी खजाने पर भार पड़ेगा, लेकिन विकास के लिए यह भार उठाने में हर्ज नहीं होना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]