आखिर इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत आगमन के कारण जब दुनिया भारत की ओर देख रही थी तब उसकी राजधानी दिल्ली भयावह हिंसा से दो-चार थी। यह हिंसा कितनी भयानक थी, इसका पता इससे चलता है कि एक पुलिस कर्मी और खुफिया ब्यूरो के एक कर्मचारी समेत करीब दो दर्जन लोगों ने अपनी जान गंवा दी। पागलपन भरी इस हिंसा में बड़े पैमाने पर संपत्ति तो स्वाहा की ही गई, सामाजिक ताने-बाने को भी गंभीर क्षति पहुंचाई गई। यह भी एक विडंबना ही है कि जिस नागरिकता कानून का भारत के किसी नागरिक से कोई लेना-देना ही नहीं उसके विरोध और समर्थन के फेर में इतनी अधिक जानें चली गईं।

यह समझा जाना चाहिए कि शरारत और नफरत से भरी इस हिंसा ने दिल्ली के दामन पर दाग लगाने और साथ ही देश का नाम खराब करने का काम किया है। दिल्ली दिल दहलाने वाली हिंसा से बच सकती थी, यदि पुलिस ने आवश्यक सतर्कता बरती होती। चूंकि उसने ऐसा नहीं किया इसलिए स्वाभाविक तौर पर उसकी आलोचना हो रही है। गत दिवस सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की ओर से दिल्ली पुलिस को जो फटकार लगी उसके लिए वह अन्य किसी को दोष नहीं दे सकती।

यह समझना कठिन है कि आखिर दिल्ली पुलिस के अधिकारी यह साधारण सी बात क्यों नहीं भांप सके कि अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को देखते हुए हिंसा भड़काई जा सकती है? दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश देकर एक तरह से उसकी भूल ही याद दिलाई। नि:संदेह भड़काऊ बयान देने वाले नेताओं ने माहौल बिगाड़ने का काम किया। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि भड़काऊ भाषण देने वाले हर नेता के खिलाफ कोई प्रभावी और सबक सिखाने वाली कार्रवाई होनी चाहिए-वे चाहे जिस दल या संगठन के हों।

इस मामले में भाजपा, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अन्य दलों के बेलगाम नेताओं में कोई भेद नहीं किया जाना चाहिए। इसी के साथ इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि दिल्ली के माहौल कोे बिगाड़ने में एक भूमिका शाहीन बाग धरने की भी है, जो सड़क पर काबिज होकर दिया जा रहा है। यह हैरानी की बात है कि करीब 70 दिन बीत जाने के बाद भी यह धरना जारी है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को उचित ही फटकार लगाई, लेकिन आखिर इस सवाल का जवाब कौन देगा कि न्यायपालिका के दखल के बाद भी शाहीन बाग का धरना क्यों जारी है? वास्तव में यह दिल्ली ही नहीं, देश का दुर्भाग्य है कि यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित बना हुआ है।