कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच यह राहत की बात है कि संक्रमण का पता लगाने के लिए अब रोजाना दो लाख से अधिक टेस्ट हो रहे हैं। यह सिलसिला न केवल कायम रहना चाहिए, बल्कि कोशिश यह की जानी चाहिए कि टेस्ट की संख्या और अधिक बढ़े। ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करके ही कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। आवश्यक यह भी है कि इसके बारे में पूरे देश में एक समान व्यवस्था बने कि किसकी जांच होनी है और उसके पश्चात किसे घर पर क्वारंटाइन होना है और किसे अस्पताल में भर्ती होना है? अभी भिन्न-भिन्न राज्यों ने अलग-अलग नियम बना रखे हैं।

स्थिति यह है कि दिल्ली में अलग व्यवस्था है और उससे सटे एनसीआर के इलाकों में अलग। जैसे इस बात को महसूस किया गया कि दिल्ली-एनसीआर को कोरोना के खिलाफ साझा रणनीति बनाना चाहिए वैसे ही यह भी समझा जाना चाहिए कि सारे देश की रणनीति एक जैसी होनी चाहिए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और साथ ही आइसीएमआर को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके दिशानिर्देशों पर अलग-अलग तरीके से अमल न हो, क्योंकि जब ऐसा होता है तो लोगों के बीच केवल भ्रम ही नहीं फैलता, बल्कि उन्हेंं अनावश्यक परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। यह परेशानी कई बार मानसिक तनाव का कारण भी बनती है और स्वास्थ्य तंत्र की बदनामी का भी।

यह देखने में आ रहा है कि कभी लोगों को जरूरत न होते हुए भी अस्पतालों में भर्ती होना पड़ता है तो कभी जरूरत पड़ने पर भी भर्ती होने के लिए इंतजार करना पड़ता है। यह न केवल कष्टकारी है, बल्कि इससे अन्य लोग अनावश्यक रूप से चिंतित होते हैं। इसका कोई मतलब नहीं कि एक जैसी स्थिति से दो-चार लोगों में से कोई तो घर पर रहकर अपनी देखभाल करने की सुविधा हासिल करे और कोई अस्पताल में भर्ती होने के लिए बाध्य हो। इसी तरह इसका भी कोई मतलब नहीं कि कोरोना की जांच के मामले में निजी अस्पतालों के तौर-तरीके अलग हों और सरकारी अस्पतालों के अलग।

यह तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि निजी अस्पतालों के टेस्ट को सरकारी अस्पताल मान्यता देने से इन्कार करें। जब यह स्पष्ट है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से जल्दी छुटकारा मिलने वाला नहीं है तब फिर यह और जरूरी हो जाता है कि कोरोना मरीजों की जांच, उपचार आदि के एक जैसे मानक तय करने और उन्हेंं लागू कराने का काम प्राथमिकता के आधार पर हो। कोरोना की जांच और उपचार की एक सुनिश्चित, सर्वमान्य और सुगम व्यवस्था बनाकर ही उसके प्रति उपजे भय को कम किया जा सकता है।