भारतीय राजनीति में माकपा का उत्थान कांग्रेस के विरोध में हुआ। पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में अपनी जड़ें जमाने के बाद माकपा राष्ट्रीय राजनीति में भी सत्ता का खेल बनाने-बिगाडऩे की स्थिति में पहुंच गई थी। माकपा का नेतृत्ववाला वाममोर्चा ने केंद्र में कभी गैर कांग्रेसी सरकार में शामिल हुआ तो कभी बाहर से समर्थन दिया। लेकिन 90 के दशक के बाद भाजपा का उत्थान होने पर माकपा धर्मनिरपेक्ष दल के नाम पर कांग्रेस के करीब आने लगी। इसमें पूर्व माकपा महासचिव हरकिशनसिंह सुरजीत और ज्योति बसु ने अहम भूमिका निभाई।
बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में माकपा ने केंद्र में कांग्रेस नेतृत्ववाली यूपीए-1 सरकार को बाहर से समर्थन दिया। लेकिन बाद में परमाणु करार के मुद्दे पर तत्कालीन माकपा महासचिव प्रकाश करात ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया। बंगाल के कुछ वरिष्ठ कामरेडों का तो यहां तक मानना है कि प्रकाश करात की यूपीए-1 सरकार से समर्थन वापस लेने की गलती का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। उसके बाद से पार्टी कमजोर होती गई। यूपीए-2 सरकार में माकपा की कïट्टर विरोधी ममता बनर्जी शामिल हो गई और उसके बाद 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा बुरी तरह हार गया।
2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में माकपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा लेकिन इससे उसका नुकसान ही हुआ। कांग्रेस राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। 2011 में बंगाल की सत्ता से माकपा के बेदखल होने के बाद उसका जनाधार घटते जा रहा है।
अब एक बार फिर जब भाजपा का उत्थान चरम पर है और कांग्रेस विपक्षी पार्टी बनने के लिए जूझ रही है तो ऐसे में माकपा की नई रणनीति पर चर्चा स्वभाविक है। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी भाजपा और सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल करने के पक्ष में थे। रविवार को कोलकाता में संपन्न हुई माकपा केंद्रीय कमेटी की बैठक में येचुरी ने इसके पक्ष में प्रस्ताव पेश किया। कट्टरपंथी करात गुट ने आपत्ति जताई और कांग्रेस से दूरी बनाए रखने पर वृहत्तर वामपंथी एकता बनाने के लिए अलग प्रस्ताव पेश किया जिस पर मत विभाजन हुआ जिसमें येचुरी का प्रस्ताव बहुमत से खारिज हो गया। फिलहाल कांग्रेस के साथ माकपा के तालमेल पर विराम लग गया लेकिन इस बारे में अंतिम निर्णय अप्रैल में हैदराबाद में प्रस्तावित माकपा की पार्टी कांग्रेस में होगी।

हाईलाइटर: (अब एक बार फिर जब भाजपा का उत्थान चरम पर है और कांग्रेस विपक्षी पार्टी बनने के लिए जूझ रही है तो ऐसे में माकपा की नई रणनीति पर चर्चा स्वभाविक है।)

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]